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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 4 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
    ऋषि: - इरिम्बिठिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-४
    58

    आ नो॑ याहि सु॒ताव॑तो॒ऽस्माकं॑ सुष्टु॒तीरुप॑। पिबा॒ सु शि॑प्रि॒न्रन्ध॑सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । न॒: । या॒हि॒ । सु॒तऽव॑त: । अ॒स्माक॑म् । सु॒ऽस्तु॒ती: । उप॑ । पिब॑ । सु । शि॒प्रि॒न् । अन्ध॑स: ॥४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ नो याहि सुतावतोऽस्माकं सुष्टुतीरुप। पिबा सु शिप्रिन्रन्धसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । न: । याहि । सुतऽवत: । अस्माकम् । सुऽस्तुती: । उप । पिब । सु । शिप्रिन् । अन्धस: ॥४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    महौषधियों के रसपान का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे इन्द्र राजन् !] (अस्माकम्) हमारी (सुष्टुतीः) सुन्दर स्तुतियों को (उप=उपेत्य) प्राप्त होकर (सुतावतः) उत्तम पुत्र आदि [सन्तानों] वाले (नः) हम लोगों को (आ याहि) आकर प्राप्त हो। (सुशिप्रिन्) हे दृढ़ जबड़ेवाले ! (अन्धसः) इस अन्न रस का (सु) भले प्रकार (पिब) पान कर ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य सुन्दर महौषधियों के रस के सेवन से हृष्ट-पुष्ट होवें ॥१॥

    टिप्पणी

    यह तृच ऋग्वेद में है-८।१७।४-६ ॥ १−(आ) आगत्य (नः) अस्मान् (याहि) प्राप्नुहि (सुतावतः) उत्तमसन्तानयुक्तान् (अस्माकम्) (सुष्टुतीः) शोभनाः स्तुतीः (उप) उपेत्य (पिब) पानं कुरु (सु) सुष्ठु (शिप्रिन्) स्फायितञ्चिवञ्चि०। उ० २।१३। शिञ् निशाने छेदने-रक्, पुक् च, यद्वा सृप्लृ गतौ-रक्, सृशब्दस्य शिभावः। शिप्रे हनूनासिके वा-निरु० ६।१७। हे दृढहनूयुक्त (अन्धसः) अन्नरसस्य ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O lord of cosmic beauty, come to us, listen to our song of adoration and drink of the soma distilled by us with intense love and devotion.

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