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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 97 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 97/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कलिः देवता - इन्द्रः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-९७
    45

    वृक॑श्चिदस्य वार॒ण उ॑रा॒मथि॒रा व॒युने॑षु भूषति। सेमं नः॒ स्तोमं॑ जुजुषा॒ण आ ग॒हीन्द्र॒ प्र चि॒त्रया॑ धि॒या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृक॑: । चि॒त् । अ॒स्य॒ । वा॒र॒ण: । उ॒रा॒ऽमथि॑: । आ । व॒युने॑षु । भू॒ष॒ति॒ ॥ स: । इ॒मम् । न॒: । स्तोम॑म् । जु॒जु॒षा॒ण: । आ । ग॒हि॒ । इन्द्र॑ । प्र । चि॒त्रया॑ । धि॒या ॥९७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृकश्चिदस्य वारण उरामथिरा वयुनेषु भूषति। सेमं नः स्तोमं जुजुषाण आ गहीन्द्र प्र चित्रया धिया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृक: । चित् । अस्य । वारण: । उराऽमथि: । आ । वयुनेषु । भूषति ॥ स: । इमम् । न: । स्तोमम् । जुजुषाण: । आ । गहि । इन्द्र । प्र । चित्रया । धिया ॥९७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 97; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वीर के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (वारणः) रोकनेवाला (उरामथिः) भेड़ों का मथने वाला (वृकः) भेड़िया (चित्) भी (अस्य) इस [वीर] के (वयुनेषु) कर्मों में (आ) अनुकूल (भूषति) हो जाता है। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले शूर] (सः) सो तू (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोत्रम्) स्तोत्र को (जुजुषाणः) स्वीकार करता हुआ (चित्रया) विचित्र (धिया) बुद्धि वा कर्म के साथ (प्र) भले प्रकार (आ गहि) आ ॥२॥

    भावार्थ

    शूर प्रतापी राजा भेड़िये की प्रकृतिवाले दुष्टों को विचित्र नीति से वश में करके प्रजा को सुखी करे ॥२॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र के अर्थ के लिये देखो-निरु० ।२१ ॥ २−(वृकः) वृक आदाने-क। श्वापि वृक उच्यते विकर्तनात्-निरु० ।२१। व्याघ्रभेदः (चित्) अपि (वारणः) वारयिता (उरामथिः) उरामथिः। उरणमथिः। उरण ऊर्णावान् भवत्यूर्णा पुनर्वृणतेरूर्णोतेर्वा-निरु० ।२१। मेषाणां मथिता नाशयिता (आ) समन्तात्। आनुकूल्येन (वयुनेषु) कर्मसु (भूषति) भवति (सः) स त्वम् (इमम्) (नः) अस्माकम् (स्तोमम्) स्तोत्रम् (जुजुषाणः) सेवमानः। स्वीकुर्वाणः (आ गहि) आगच्छ (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् वीर (प्र) प्रकर्षेण (चित्रया) अद्भुतया (धिया) बुद्ध्या ॥

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    विषय

    'वृक व उरामथि' के जीवन में परिवर्तन

    पदार्थ

    १. (वारण:) = सबके मार्गों को रोकनेवाला (वृकःचित्) = स्तेन [चोर] भी तथा (उरामथि:) = [उर togo] मार्ग में जानेवालों का हिंसक [Highway robber] डाकू भी (अस्य वयुनेषु) = इस प्रभु का प्रज्ञान होने पर, कहीं अकस्मात् सत्संग में प्रभु का उपदेश सुनने पर (आभूषति) = अनुकूल को प्राप्त करता है, अर्थात् प्रतिकूल कर्मों से निवृत्त हो जाता है। २. हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (स:) = वे आप (इमं नः) = इस हमारे (स्तोमम्) = स्तवन को (जुजुषाण:) = प्रीतिपूर्वक ग्रहण करते हुए (चित्रया धिया) = चेतना देनेवाली बुद्धि के साथ (प्र आगहि) = प्रकर्षेण प्राप्त होइए।

    भावार्थ

    प्रभु-विषयक उपदेश चोरों व डाकुओं के जीवन में भी परिवर्तन लानेवाला होता है। प्रभु हमारे स्तोम से प्रसन्न हों और हमारे लिए चेतनादायिनी बुद्धि दें।

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    भाषार्थ

    (अस्य) इस परमेश्वर-सम्बन्धी (वयुनेषु) सत्यज्ञानों के प्राप्त हो जाने पर, (वृकः चित्) भेड़िये के समान क्रूर स्वभाववाला व्यक्ति, तथा (वारणः) हाथी के सदृश प्रबल तथा मदमस्त, और (उरामथिः) अति व्यथादायक व्यक्ति भी (आ भूषति) स्तुतियों द्वारा परमेश्वर की शोभा को बढ़ाने लगता है। (इन्द्र) हे परमेश्वर! (सः) वह आप (नः) हमारे (इमम्) इस (स्तोमम्) स्तवन को (जुजुषाणः) प्रीतिपूर्वक स्वीकार करते हुए, (चित्रया धिया) आश्चर्यकारी प्रज्ञा के प्रदान द्वारा (आगहि) हमें प्राप्त हूजिए।

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    विषय

    राजा।

    भावार्थ

    (उशमथिः) भेड़ों के नाश करने वाले (वृकः चित्) भेड़िये के समान स्वभाव वाला दुष्ट पुरुष और (वारणः) हस्ति के समान बलवान् जीव भी (अस्य वयुनेषु) इसके उत्कृष्ट ज्ञान और मार्गों में (आभूषति) उसके अनुकूल हो जाता है। हे (इन्द्र) राजन् ! तू (नः) हमारे (इमं स्तोमं) इस स्तुति समूह को (जुषाणः) प्रेम से सुनता हुआ (चित्रया धिया) अपनी सबको चेताने वाली बुद्धि और कार्यशैली से (नः आगहि) हमें प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कलिर्ऋषिः। इन्द्रो देवता। बृहत्यः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    The wolf, its counterforce elephant, and the thief all have to accept and follow the laws of this lord Indra. May he, loving and cherishing this our song of adoration, listen and come with gifts of clear and un- illusive intelligence and understanding.

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    Translation

    Even the wolf, the savage beast that rends the sheep adhere to the path of his (the brave mans’) decrees. So, O mighty ruler, you graciously accepting this our praise come to us with wondrous thought.

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    Translation

    Even the wolf, the savage beast that rends the sheep adhere to the path of his (the brave mans) decrees. So, O mighty ruler, you graciously accepting this our praise come to us with wondrous thought.

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    Translation

    What act of daring and vigour there is that has not been done by the Mighty Lord or the king? Who has not heard His fame or glory through wonderful acts worth hearing? He is the Destroyer of the evil forces of Ignorance and darkness all over the Creation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र के अर्थ के लिये देखो-निरु० ।२१ ॥ २−(वृकः) वृक आदाने-क। श्वापि वृक उच्यते विकर्तनात्-निरु० ।२१। व्याघ्रभेदः (चित्) अपि (वारणः) वारयिता (उरामथिः) उरामथिः। उरणमथिः। उरण ऊर्णावान् भवत्यूर्णा पुनर्वृणतेरूर्णोतेर्वा-निरु० ।२१। मेषाणां मथिता नाशयिता (आ) समन्तात्। आनुकूल्येन (वयुनेषु) कर्मसु (भूषति) भवति (सः) स त्वम् (इमम्) (नः) अस्माकम् (स्तोमम्) स्तोत्रम् (जुजुषाणः) सेवमानः। स्वीकुर्वाणः (आ गहि) आगच्छ (इन्द्र) परमैश्वर्यवन् वीर (प्र) प्रकर्षेण (चित्रया) अद्भुतया (धिया) बुद्ध्या ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    বীরলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (বারণঃ) প্রতিরোধকারী/নিবারণকারী (উরামথিঃ) ভেড়া-মেষাদির মন্থনকারী/বিনাশকারী (বৃকঃ) বৃক/নেকড়ে (চিৎ)(অস্য) এই [বীরের] (বয়ুনেষু) কর্মে (আ) প্রভাবিত/অনুকূল (ভূষতি) হয়ে যায়। (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [মহান ঐশ্বর্যশালী বীর] (সঃ) তুমি (নঃ) আমাদের (ইমম্) এই (স্তোত্রম্) স্তোত্রকে (জুজুষাণঃ) স্বীকার পূর্বক (চিত্রয়া) অদ্ভুত (ধিয়া) বুদ্ধি বা কর্মের সহিত (প্র) উত্তমরূপে (আ গহি) আগমন করো॥২॥

    भावार्थ

    বীর প্রতাপী রাজা ব্যাঘ্রাদির ন্যায় বৈশিষ্ট্যযুক্ত দুষ্টদের বিচিত্র নীতি দ্বারা নিজের বশবর্তী করে প্রজাদের সুখী করে/করুক ॥২॥ এই মন্ত্রের অর্থের জন্য দেখুন -নিরু০ ৫।২১ ॥

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    भाषार्थ

    (অস্য) এই পরমেশ্বর-সম্বন্ধী (বয়ুনেষু) সত্যজ্ঞান প্রাপ্ত হলে, (বৃকঃ চিৎ) বৃক/নেকড়ের সমান ক্রূর স্বভাবের ব্যক্তি, তথা (বারণঃ) হাতির সদৃশ প্রবল তথা উন্মত্ত, এবং (উরামথিঃ) অতি ব্যথাদায়ক ব্যক্তিও (আ ভূষতি) স্তুতি দ্বারা পরমেশ্বরের শোভা বৃদ্ধি করে। (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (সঃ) সেই আপনি (নঃ) আমাদের (ইমম্) এই (স্তোমম্) স্তবন (জুজুষাণঃ) প্রীতিপূর্বক স্বীকার করে, (চিত্রয়া ধিয়া) আশ্চর্যকারী প্রজ্ঞার প্রদান দ্বারা (আগহি) আমাদের প্রাপ্ত হন।

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