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अथर्ववेद के काण्ड - 4 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    ऋषिः - बादरायणिः देवता - अप्सराः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा जगती सूक्तम् - वाजिनीवान् ऋषभ सूक्त
    77

    यायैः॑ परि॒नृत्य॑त्या॒ददा॑ना कृ॒तं ग्लहा॑त्। सा नः॑ कृ॒तानि॑ सीष॒ती प्र॒हामा॑प्नोतु मा॒यया॑। सा नः॒ पय॑स्व॒त्यैतु॒ मा नो॑ जैषुरि॒दं धन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । अयै॑: । प॒रि॒ऽनृत्य॑ति । आ॒ऽददा॑ना । कृ॒तम् । ग्लहा॑त् । सा । न॒: । कृ॒तानि॑ । सी॒ष॒ती । प्र॒ऽहाम् । आ॒प्नो॒तु॒ । मा॒यया॑ । सा । न॒: । पय॑स्वती । आ । ए॒तु॒ । मा । न॒: । जै॒षु॒ । इ॒दम् । धन॑म् ॥३८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यायैः परिनृत्यत्याददाना कृतं ग्लहात्। सा नः कृतानि सीषती प्रहामाप्नोतु मायया। सा नः पयस्वत्यैतु मा नो जैषुरिदं धनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । अयै: । परिऽनृत्यति । आऽददाना । कृतम् । ग्लहात् । सा । न: । कृतानि । सीषती । प्रऽहाम् । आप्नोतु । मायया । सा । न: । पयस्वती । आ । एतु । मा । न: । जैषु । इदम् । धनम् ॥३८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 38; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (या) जो शक्ति (अयैः) मङ्गल अनुष्ठानों के साथ (ग्लहात्) [अपने] अनुग्रह से (कृतम्) कर्म (आददाना) स्वीकार करती हुयी (परिनृत्यति) सब ओर चेष्टा करती है। (सा) वही (नः) हमारे (कृतानि) कर्मों को (मायया) बुद्धि के साथ (सीषती) नियमबद्ध चाहती हुयी (प्रहाम्) उत्तम गति (आप्नोतु) प्राप्त करे [अर्थात् प्रसन्न हो] (सा) वही (नः) हमारे लिये (पयस्वती) अन्नवाली होकर (ऐतु) आवे। (नः) हमारे (इदम्) इस (धनम्) धन को [शत्रु लोग] (मा जैषुः) न जीतें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर की शक्तियों को जानकर पुष्कल अन्न आदि पदार्थ प्राप्त करके बलवान् हों ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(या) (अयैः) एति सुखमनेन, इण् गतौ-अच्। अयः शुभावहे विधिः-इत्यमरः। ४।२७। शुभावहैर्विधिभिः। मङ्गलानुष्ठानैः (परिनृत्यति) सर्वत्र चेष्टते (आददाना) स्वीकुर्वाणा (कृतम्) कर्म (ग्लहात्) स्वानुग्रहात् (सा) (नः) अस्माकम् (कृतानि) कर्माणि (सीषती) षिञ् बन्धने-सनि, शतरि छान्दसं रूपम्। सिषीषन्ती। बन्धुं नियन्तुम् इच्छन्ती (प्रहाम्) प्र+ओहाङ् गतौ-क, टाप्। प्रकृष्टां गतिम् (आप्नोतु) प्राप्नोतु (मायया) प्रज्ञया-निघ० ३।९। (नः) अस्मभ्यम् (पयस्वती) पयः=अन्नम्-निघ० २।७। अन्नवती (ऐतु) आगच्छतु (नः) अस्माकम् (मा जैषुः) जि जये माङि लुङि रूपम्। न जयन्तु। माप हार्षुः शत्रवः (इदम्) (धनम्) वित्तम् ॥

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    विषय

    शुभ कर्मों में नृत्य करनेवाली

    पदार्थ

    १. हमारे घर में उस गृहिणी का प्रवेश हो (या) = जो (अयैः) = शुभावह विधियों से-पुण्यमार्गों से (परिनत्यति) = कार्यों में नृत्य करती है-कार्यों को स्फूर्ति से करती है। वह पत्नी (ग्लहात्) = घर को उत्तम बनाने की स्पर्धा से (कृतम् आददाना) = उत्तम कर्मों का आदान करती है। २. (सा) = यह गृहिणी (न:) = हमारे (कृतानि) = कर्तव्यकर्मों को (सीषती) = नियमबद्ध करती हुई [ओहाङ् गतौ] अथवा प्रकृष्ट त्याग-सब अशुभों के दूरीकरण को [ओहाक् त्यागे] (आप्नोतु) = प्राप्त करे। ३ (सा) = वह पत्नी (पयस्वती) = दूध आदि उत्तम पदार्थोंवाली (न:) = हमें (आ एतु) = सर्वथा प्राप्त हो। गृहिणी इस बात का ध्यान करे कि दूसरे लोग (नः इदं धनम्) = हमारे इस उत्तम गृहरूप धन को (मा जैष:) = जीतनेवाले न हों। हमारा घर उत्तमता में पिछड़ न जाए।

    भावार्थ

    १. पत्नी शुभ-कर्मों को सदा स्फूर्ति से करनेवाली हो, २. गृह को उत्तम बनाने की स्पर्धा से शुभकों का स्वीकार करे, ३. समझदारी से घर को आगे और आगे ले-चले, ४. घर में दूध आदि पदार्थों की कभी न होने दे, ५. गृह-धन को अपव्ययित न होने दे।

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    भाषार्थ

    (या) जो [अप्सरा अर्थात् रूपवती महिला), (अयै:) पादगतियों द्वारा (परिनृत्यति) घूम-घूमकर सब ओर [प्रसन्नता में] नाचती हुई, और (ग्लहात्) स्वीकृत गृहस्थ से (कृतम्) सुकृत-कर्मों का (आददाना) आदान करती हैं, (सा) वह (न:) हमें (कृतानि) सुकृत-कर्मों का उपदेश (सीषती) देती हुई, (मायया) निज प्रज्ञा द्वारा (प्रहाम्) असत्-कर्मों के पूर्णतया त्याग को (आप्नोतु) प्राप्त हो। (सा) वह (न:) हमें (पयस्वती) दुग्धवाली हुई (आ एतु) आये, (न:) हमारे (इदम्, धनम्) इस धन पर (मा जैषुः) घातक शक्तियाँ विजय न पाएँ।

    टिप्पणी

    [अयै:= अय गतौ (भ्वादिः)। परिनृत्यति द्वारा अप्सरा के घूम-घूमकर चारों ओर नाचने का निर्देश हुआ है। इस निमित्त भिन्न भिन्न पादगतियाँ करनी होती हैं, इसलिए 'अयैः' में बहुवचन का प्रयोग हुआ है। अथर्ववेद में नृत्यकला को उपादेय माना है। यथा "को नृतो दधौ" (१०।२।१७)। "नृतये हसाय" (१२।२।२२)। इस प्रकार अथर्व में अन्यत्र भी नृत्यकला का कथन हुआ है। सीषती= षणु दाने (तनादिः)।प्रहाम्= प्र+ओहाक् त्यागे (जुहोत्यादिः)। मायया= माया प्रज्ञानाम (निघं० ३।९)। पयस्वती= दुग्धवती। इस द्वारा अप्सरा को गृहस्थवती निर्दिष्ट किया है। सन्तानोत्पन्न होने पर ही, उनके दुग्धपान के लिए माता की छाती में दुग्ध का अवतरण होता है। धनम्= सन्तानरूपी धन। इस धन पर घातक रोग आदि विजय न पाएँ, यह अभिप्राय है।]

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    विषय

    चितिशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (या) जो चिति शक्ति (अयैः) सदा गतिमान् इन इन्द्रियों से (ग्लहात्) इन्द्रियों के विषय ग्रहण रूप व्यापार में (परिनृत्यती) प्रसन्न होकर (कृतं आददाना) अपने किये कार्य या मुख्य प्राण को अपनाती है वही (नः) हमारे (कृतानि) किये कर्मों को (सीषती) एक शृंखला में बांधती हुई भी (मायया) बुद्धि शक्ति से या ज्ञानमयी मुद्रा से सब दुष्ट कर्मों को नाश करने वाली, अन्त में (प्रहाम्) कर्म हानि रूप दशा को भी प्राप्त (आप्नोतु) करे। (सा) वह (पयस्वती) आनन्द-रस वाली (नः एतु) हमें प्राप्त हों जिससे बाह्य विषय (नः) हमारे (इदं धनं) इस आत्म-ज्ञान रूप धन को (मा जैषुः) न हर ले जायं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    बादरायणिर्ऋषिः। अप्सरो ग्लहाश्च देवताः। १, २ अनुष्टुभौ। ३ षट्पदा त्र्यवसाना जगती। ५ भुरिग् जगत्यष्टिः। ६ त्रिष्टुप्। ७ त्र्यवसाना पञ्चपदाऽनुष्टुव् गर्भा परोपरिष्टात् ज्योतिष्मती जगती। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Shakti, Shaktivan

    Meaning

    Apsara who, with her noble acts, rejoices and celebrates life in song and dance, collecting and consolidating the achievements of her performance in the evolutionary struggle of life, may, we pray, guiding and organising our actions, achieve further progress by her wonderful power and intelligence. May she, abounding in the waters and food of life continue to come and bless us so that none may win away this wealth of achievement from us.

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    Translation

    She (apsaras), who dances all around with dice (ayas), taking to herself the winning stakes from the pool, may she, trying to win stakes for the wager with her skill (mayaya), obtain success. May she, rich with milk, come to us. May others not win these riches from us. (Apsaras are intimately connected with gambling with dice. - Griffith).

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    Translation

    This apsara (electricity) which obtaining the activity from the conducting material dances (works) everywhere. Let this obtain nice movement connecting all the good works of our advantage with its strength. Let it come to us accompanied by rainy water and let it not seize our wealth.

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    Translation

    In the struggle of life she, through beautiful moral devices, performs excellent deeds and remains happy. May she, controlling and regularising our actions, advance through her fine intellect.May she, full of milk and food-stuffs come to our house, so that through her nice administration none may win this wealth of ours.

    Footnote

    Win means take away. A skilful wife preserves the wealth or the family, and allows none to take it away and waste it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(या) (अयैः) एति सुखमनेन, इण् गतौ-अच्। अयः शुभावहे विधिः-इत्यमरः। ४।२७। शुभावहैर्विधिभिः। मङ्गलानुष्ठानैः (परिनृत्यति) सर्वत्र चेष्टते (आददाना) स्वीकुर्वाणा (कृतम्) कर्म (ग्लहात्) स्वानुग्रहात् (सा) (नः) अस्माकम् (कृतानि) कर्माणि (सीषती) षिञ् बन्धने-सनि, शतरि छान्दसं रूपम्। सिषीषन्ती। बन्धुं नियन्तुम् इच्छन्ती (प्रहाम्) प्र+ओहाङ् गतौ-क, टाप्। प्रकृष्टां गतिम् (आप्नोतु) प्राप्नोतु (मायया) प्रज्ञया-निघ० ३।९। (नः) अस्मभ्यम् (पयस्वती) पयः=अन्नम्-निघ० २।७। अन्नवती (ऐतु) आगच्छतु (नः) अस्माकम् (मा जैषुः) जि जये माङि लुङि रूपम्। न जयन्तु। माप हार्षुः शत्रवः (इदम्) (धनम्) वित्तम् ॥

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