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अथर्ववेद के काण्ड - 5 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 16/ मन्त्र 9
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - एकवृषः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
    46

    यदि॑ नववृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । न॒व॒ऽवृ॒ष: । असि॑। सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि नववृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । नवऽवृष: । असि। सृज । अरस: । असि ॥१६.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    पुरुषार्थ का उपदेश।

    पदार्थ

    (यदि) जो तू (नववृषः) नव [अर्थात् नव द्वारवाले शरीर] से ऐश्वर्यवान् (असि) है.... म० १ ॥९॥

    भावार्थ

    शरीर में दो कान, दो आँखें, दो नथने, एक मुख, एक पायु, एक उपस्थेन्द्रिय नव छिद्र वा द्वार हैं, यथा, नवद्वारपुरे देही−गीता अ० ५ श्लो० १३। मनुष्य शरीर की शुद्धि रखने और उससे कष्ट सहने से ऐश्वर्यवान् हों ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(नववृषः) नवद्वारपुरेण शरीरेण ऐश्वर्यवान्। नवद्वारपुरे देही−गीता, अ० ५ श्लो० १३। द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी नासिके च मुखमेकमिति ऊर्ध्वस्थानि सप्त, द्वे पायूपस्थेऽधः, इति नव छिद्ररूपाणि शरीरद्वाराणि ॥

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    विषय

    छह से दस तक

    पदार्थ

    १. यदि (घड्वृषः असि) = यदि तुने पाँचों ज्ञानन्द्रियों के साथ एक छठी कर्मेन्दिय को भी सशक्त बनाना है, तो (सृज) = अभी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर । इन छह के सशक्त हो जाने पर भी तू (अरस: असि) = अरस ही है, तेरा जीवन रसमय नहीं बन पाया है। २. यदि (सप्तवृषः असि) = यदि तू एक और कर्मेन्दिय को सशक्त बनाकर सात को सशक्त बना पाया है, तो भी तु और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी जीवन अरस ही है। ३. (यदि अष्टवृषः असि) = यदि तूने आठ इन्द्रियों को सशक्त बनाया है तो अभी और शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू सरस नहीं बना। ४. (यदि नववृषः असि) = यदि नौ इन्द्रियों को भी शक्तिशाली बनाया है तो भी तू अरस ही है, अभी और शक्ति उत्पन्न कर । ५. (यदि दशवृषः असि) = दसों इन्द्रियों को भी तूने शक्तिशाली बनाया है, तो भी और अधिक शक्ति उत्पन्न कर, क्योंकि अभी तू जीवन को सरस नहीं बना पाया है।

    भावार्थ

    पाँचों ज्ञानेन्द्रियों व पाँचों कर्मेन्द्रियों के सशक्त हो जाने पर भी जीवन में सरसता नहीं आती। अभी मन को भी सशक्त बनाना है।

     

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    भाषार्थ

    (यदि नववृषः असि) यदि तेरी ९ इन्द्रियाँ तुझपर निजविषयों की वर्षा करती हैं, तो (सृज) "ऋतप्रजात ऋतावरी" वृत्ति का सर्जन कर (सूक्त १५), (अरसः) उस ऐन्द्रियिक वर्षा-रस अर्थात् वर्षा-उदक [के प्रभाव] से रहित (असि) तू हो जाएगा।

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    विषय

    आत्मा की शक्ति वृद्धि करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (यदि नव-वृषः असि०) यदि नव प्राणों से युक्त है तो भी अभी और पैदा कर, अभी भी निर्बल है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। एकवृषो देवता। १, ४, ५, ७-१० साम्न्युष्णिक्। २, ३, ६ आसुरी अनुष्टुप्। ११ आसुरी गायत्री। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Spiritual Strength and Creativity

    Meaning

    If you are strong and virile with nine, nine forms of wealth gifted by Lakshmi, create and contribute something positive to life, otherwise be void of the real pleasure of life.

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    Translation

    If you have nine powers, then create (more power), You are powerless:

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    Translation

    If you possess nine potential powers, use it to success otherwise you are of no use.

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    Translation

    O man, if thou fully understandest thy body, having nine gates, enhance thy pleasure, otherwise thou art powerless.

    Footnote

    Nine gates: Two eyes, two ears, two nostrils, mouth, anus, penis, नवद्वारेपुरेदेहीGita, S-13.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(नववृषः) नवद्वारपुरेण शरीरेण ऐश्वर्यवान्। नवद्वारपुरे देही−गीता, अ० ५ श्लो० १३। द्वे श्रोत्रे, चक्षुषी नासिके च मुखमेकमिति ऊर्ध्वस्थानि सप्त, द्वे पायूपस्थेऽधः, इति नव छिद्ररूपाणि शरीरद्वाराणि ॥

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