अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 2
पुं॒सि वै रेतो॑ भवति॒ तत्स्त्रि॒यामनु॑ षिच्यते। तद्वै पु॒त्रस्य॒ वेद॑नं॒ तत्प्र॒जाप॑तिरब्रवीत् ॥
स्वर सहित पद पाठपुं॒सि । वै। रेत॑: । भ॒व॒ति॒ । तत् । स्त्रि॒याम् । अनु॑ । सि॒च्य॒ते॒ । तत्। वै । पु॒त्रस्य॑ । वेद॑नम्। तत् । प्र॒जाऽप॑ति: । अ॒ब्र॒वी॒त् ॥११.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पुंसि वै रेतो भवति तत्स्त्रियामनु षिच्यते। तद्वै पुत्रस्य वेदनं तत्प्रजापतिरब्रवीत् ॥
स्वर रहित पद पाठपुंसि । वै। रेत: । भवति । तत् । स्त्रियाम् । अनु । सिच्यते । तत्। वै । पुत्रस्य । वेदनम्। तत् । प्रजाऽपति: । अब्रवीत् ॥११.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गर्भाधान का उपदेश।
पदार्थ
(पुंसि) रक्षा स्वभाव पुरुष में (वै) ही (रेतः) वीर्य (भवति) होता है, (तत्) वह वीर्य (स्त्रियाम्) स्त्री में (अनु) अनुकूल विधि से (सिच्यते) सींचा जाता है। (तत्) वह कर्म (वै) ही (पुत्रस्य) कुलशोधक संतान की (वेदनम्) प्राप्ति का कारण है, (तत्) वही (प्रजापतिः) प्रजाओं के रक्षक ईश्वर ने (अब्रवीत्) बताया है ॥२॥
भावार्थ
युवा अवस्था में ही मनुष्य पूर्ण बलवान् और वीर्यवान् होकर उत्तम बलवान् संतान उत्पन्न करे, यह ईश्वरनियम है ॥२॥
टिप्पणी
२−(पुंसि) अ० ३।६।१। रक्षणस्वभावे बलवति पुरुषे (वै) एव (रेतः) अ० २।२८।५। वीर्यम् (भवति) (तत्) रेतः (स्त्रियाम्) पत्न्याम् (अनु) आनुकूल्येन। यथाविधि (सिच्यते) सेचनं क्रियते (तत्) रेतःसेचनम् (वै) (पुत्रस्य) (वेदनम्) प्राप्तिकारणम् (प्रजापतिः) प्रजानां पालकः परमेश्वरः (अब्रवीत्) अकथयत् ॥
विषय
रेतः सेचन
पदार्थ
१. (पुंसि वै) = पुमान् में निश्चय से (रेतः भवति) = रेतस् (वीर्य) होता है, (तत्) = वह वीर्य (स्त्रियाम्) = स्त्री में (अनुसिच्यते) = सींचा जाता है। २. (तत् वै) = वह वीर्य सचेन ही निश्चय से (पुत्रस्य वेदनम्) = पुत्र- प्राप्ति का साधन है। (तत् प्रजापतिः अब्रवीत्) = यह बात प्रजापति ने कही है। भावार्थ- पुमान् का स्त्री में वीर्यसेचन होने पर वीर सन्तान की प्राप्ति होती है।
भाषार्थ
(पुंसि) पुमान् में ( वै ) निश्चय से ( रेतस् ) वीर्य (भवति ) होता है, (तत्) उसे (स्त्रियाम्) स्त्री में (अनु) विधि के अनुकूल (सिच्यते ) सींचा जाता है । (तत्) वह वीर्य (वै) निश्चय से (पुत्रस्य) पुत्र की ( वेदनम् ) प्राप्ति कराता है (तत्) यह (प्रजापतिः) प्रजाओं के पति परमेश्वर ने (अब्रवीत्) कहा है।
टिप्पणी
[स्त्रियाम् में एकवचन द्वारा पत्नी की एकता को सूचित कर, तद् द्वारा पति की एकता को सूचित किया है]।
विषय
गर्भाधान और प्रजनन विद्या।
भावार्थ
अश्वत्थ और शमी की समस्या को स्पष्ट करते हैं। (पुंसि वै) पुरुष में ही (रेतः) वीर्य (भवति) उत्पन्न होता है। (तत्) वही चीर्य (स्त्रियाम्) स्त्री के गर्भ में (अनु-सिच्यते) गर्भाधान द्वारा सींचा जाता है। (तद्) वह (वै) ही निश्चय से (पुत्रस्य) पुत्र के (वेदनम्) प्राप्त करने का उपाय है, (तत्) यह (प्रजापतिः) प्रजापालक परमेश्वर (अब्रवीत्) उपदेश करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजापतिर्ऋषिः। रेतो देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Punsavana
Meaning
The seed is in the male. That is sown in the female. This, with the use of the ashvattha, is the sure centainty for a male child. This is what Prajapati, father and sustainer of humanity has said.
Translation
In the male, of course, the semen is formed. That, afterwards, is discharged into the female. That surely is the begettér of a son, so the Lord of offsprings (Prajapati) has proclaimed.
Translation
The genial seed has its Origination in man and that is sown in the woman. This is the finding of a son; thus declares a house-holder.
Translation
Man possesses the semen, he discharges it in the womb of a woman. That is the source of getting a son. God, the Lord of humanity has thus ordained.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(पुंसि) अ० ३।६।१। रक्षणस्वभावे बलवति पुरुषे (वै) एव (रेतः) अ० २।२८।५। वीर्यम् (भवति) (तत्) रेतः (स्त्रियाम्) पत्न्याम् (अनु) आनुकूल्येन। यथाविधि (सिच्यते) सेचनं क्रियते (तत्) रेतःसेचनम् (वै) (पुत्रस्य) (वेदनम्) प्राप्तिकारणम् (प्रजापतिः) प्रजानां पालकः परमेश्वरः (अब्रवीत्) अकथयत् ॥
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