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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 113 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 113/ मन्त्र 1
    ऋषि: - अथर्वा देवता - पूषा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - पापनाशन सूक्त
    31

    त्रि॒ते दे॒वा अ॑मृजतै॒तदेन॑स्त्रि॒त ए॑नन्मनु॒ष्येषु ममृजे। ततो॒ यदि॑ त्वा॒ ग्राहि॑रान॒शे तां ते॑ दे॒वा ब्रह्म॑णा नाशयन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒ते । दे॒वा: । अ॒मृ॒ज॒त॒ । ए॒तत् । एन॑: । त्रि॒त: । ए॒न॒त् । म॒नु॒ष्ये᳡षु । म॒मृ॒जे॒ । तत॑: । यदि॑। त्वा॒ । ग्राहि॑: । आ॒न॒शे । ताम् । ते॒ । दे॒वा: । ब्रह्म॑णा । ना॒श॒य॒न्तु॒ ॥११३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिते देवा अमृजतैतदेनस्त्रित एनन्मनुष्येषु ममृजे। ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे तां ते देवा ब्रह्मणा नाशयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिते । देवा: । अमृजत । एतत् । एन: । त्रित: । एनत् । मनुष्येषु । ममृजे । तत: । यदि। त्वा । ग्राहि: । आनशे । ताम् । ते । देवा: । ब्रह्मणा । नाशयन्तु ॥११३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 113; मन्त्र » 1
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    हिन्दी (2)

    विषय

    पाप शुद्ध करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रिते) तीनों कालों वा लोकों में फैले हुए त्रित परमात्मा के बीच [वर्तमान] (देवाः) विद्वानों ने (एतत्) इस (एनः) पाप को (अमृजत) शुद्ध किया है, (त्रितः) त्रिलोकीनाथ त्रित परमेश्वर ने (एनत्) इस [पाप] को (मनुष्येषु) मनुष्यों में [ज्ञान द्वारा] (ममृजे) शोधा है। [हे मनुष्य !] (ततः) इस पर भी (यदि) जो (त्वा) तुझको (ग्राहिः) जकड़नेवाली पीड़ा [गठिया आदि] ने (आनशे) घेर लिया है, (देवाः) विद्वान् लोग (ते) तेरा (ताम्) उस [पीड़ा] को (ब्रह्मणा) वेद द्वारा (नाशयन्तु) नाश करें ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने वेद द्वारा मनुष्य को पापनाश का उपाय बताया है, यह बात साक्षात् करके विद्वानों ने अपने दोष नाश किये हैं, इतना जानने पर भी यदि मनुष्य पाप में फँसे तो विद्वानों से पूछकर दोषनिवृत्ति करें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(त्रिते) अ० ५।१।१। त्रि+तनु विस्तारे−ड। त्रिषु कालेषु लोकेषु वा विस्तीर्णे परमेश्वरे वर्त्तमानाः (देवाः) विद्वांसः (अमृजत) मृजू शौचालङ्कारयोः। शोधितवन्तः (एतत्) आत्मनि वर्त्तमानम् (एनः) अ० २।१०।८। पापम् (त्रितः) त्रिलोकीनाथः (एनत्) पापम् (मनुष्येषु) (ममृजे) मृष्टवान् (ततः) तदनन्तरमपि (यदि) (त्वा) (ग्राहिः) अ० २।९।१। अङ्गग्रहीत्री पीडा (आनशे) अश्नोतेश्च। पा० ७।४।७२। इत्यभ्यासादुत्तरस्य नुट्। व्याप (ताम्) ग्राहिम् (ते) तव (देवाः) विद्वांसः (ब्रह्मणा) वेदज्ञानेन (नाशयन्तु) ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Freedom by Knowledge

    Meaning

    Divinities cleanse life from sin and evil throughout the three phases of time, past, present and future. The Lord of past, present and future, removes this sin and evil from among humans too. For this reason, O man, if ever sin and evil come and take you on, let the Devas, brilliant sages, wash that away and cleanse you with Vedic knowledge.

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