अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 136/ मन्त्र 2
ऋषिः - वीतहव्य
देवता - नितत्नीवनस्पतिः
छन्दः - एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती
सूक्तम् - केशदृंहण सूक्त
72
दृंह॑ प्र॒त्नान् ज॒नयाजा॑तान् जा॒तानु॒ वर्षी॑यसस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठदृंह॑ । प्र॒त्नान् । ज॒नय॑ । अजा॑तान् । जा॒तान् । ऊं॒ इति॑ । वर्षी॑यस: । कृ॒धि॒ ॥१३६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
दृंह प्रत्नान् जनयाजातान् जातानु वर्षीयसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठदृंह । प्रत्नान् । जनय । अजातान् । जातान् । ऊं इति । वर्षीयस: । कृधि ॥१३६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
केश के बढ़ाने का उपदेश।
पदार्थ
[हे नितत्नी !] (प्रत्नान्) पुराने [केशों] को (दृंह) दृढ कर, (अजातान्) बिना उत्पन्न हुओं को (जनय) उत्पन्न कर, (उ) और (जातान्) उत्पन्न हुओं को (वर्षीयसः) बहुत लम्बा (कृधि) बना ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में नितत्नी ओषधि के गुणों का वर्णन है ॥२॥
टिप्पणी
२−(दृंह) दृढीकुरु (प्रत्नान्) पुरातनान् केशान् (जनय) उत्पादय (अजातान्) अनुत्पन्नान् (जातान्) (उ) अपि (वर्षीयसः) अ० ४।९।८। वृद्ध−ईयसुन्। प्रवृद्धतरान् (कृधि) कुरु ॥
विषय
नितत्नि
पदार्थ
१. हे (ओषधे) = नितत्नी नामक ओषधे! तू (देवी) = रोगों को जीतने की कामनावाली है, (देव्यां पृथिव्याम् अधिजाता असि) = तू दिव्य गुणों से युक्त इस पृथिवी में उत्पन्न हुई है। हे नितत्नि-नितन्वाने-न्यक प्रसरणशीले-नीचे की ओर फैलनेवाली ओषधे! तम् त्वा-उस तुझे केशेभ्य: दहणाय-केशों के दृढ़ीकरण के लिए खनामसि-खोदकर संग्रहीत करते हैं। २. हे ओषधे! तू प्रत्नान्-पुरातन केशों को दह-दृढ़ कर, अजातान् जनय-अनुत्पन केशों को उत्पन्न कर और जातान् उ-पैदा हुए-हुए को भी वर्षीयसः कृधि-प्रवृद्धतम व आयततम कर-दीर्घ बना।
भावार्थ
नितत्नी नामक ओषधि के द्वारा केशों से सम्बद्ध विकारों को दूर किया जा सकता है। यह पुराने बालों को दृढ़ करती है, अजातों को उत्पन्न करती है तथा उत्पन्न बालों को लम्बा करने का साधन बनती है। इसी से इसका नाम नितली हुआ है।
भाषार्थ
हे ओषधि ! (प्रत्नान्) पुराने केशों को तूं (दृंह) दृढ़ कर, (अजातान्) अनुत्पन्नों को (जनय) पैदा कर, (जातान् उ) और उत्पन्नों को (वर्षीयसः) प्रवृद्ध (कृधि) कर।
विषय
केशवर्धनी नितत्नी ओषधि।
भावार्थ
हे ओषधि ! (प्रत्नान्) पुराने केशों को (दंह) दृढ़ कर और (अजातान्) जिस स्थान पर केश उत्पन्न होने चाहियें परन्तु नहीं होवें उस स्थान पर केशों को भी (जनय) उत्पन्न कर। और (जातान्) उत्पन्न हुए केशों को (वर्षीयसः कृधि) बड़ा लम्बा या चिरस्थायी कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
केशवर्धनकामो वीतहव्योऽथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता १-२ अनुष्टुभौ। २ एकावसाना द्विपदा साम्नी बृहती। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Hair Care
Meaning
Strengthen the old wearing out hair, grow where hair has not grown, and where hair is grown, make it long and luxurious.
Translation
Make old hair firm; make new ones spring out, which are yet unborn; make longer the already growing ones.
Translation
Let this plant make the old hair firm, make new ones spring and lengthen whatever hath already growth.
Translation
Make the old hair firm, O Nitatni! make new hair spring, lengthen the hair already grown.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(दृंह) दृढीकुरु (प्रत्नान्) पुरातनान् केशान् (जनय) उत्पादय (अजातान्) अनुत्पन्नान् (जातान्) (उ) अपि (वर्षीयसः) अ० ४।९।८। वृद्ध−ईयसुन्। प्रवृद्धतरान् (कृधि) कुरु ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal