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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - ईर्ष्याविनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ईर्ष्याविनाशन सूक्त
    58

    यथा॒ भूमि॑र्मृ॒तम॑ना मृ॒तान्मृ॒तम॑नस्तरा। यथो॒त म॒म्रुषो॒ मन॑ ए॒वेर्ष्योर्मृ॒तं मनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यथा॑ । भूमि॑: । मृ॒तऽम॑ना: । मृ॒तात् । मृ॒तम॑न:ऽतरा॑ । यथा॑ । उ॒त । म॒म्रुष॑: । मन॑: । ए॒व । ई॒र्ष्यो: । मृ॒तम् । मन॑: ॥१८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यथा भूमिर्मृतमना मृतान्मृतमनस्तरा। यथोत मम्रुषो मन एवेर्ष्योर्मृतं मनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यथा । भूमि: । मृतऽमना: । मृतात् । मृतमन:ऽतरा । यथा । उत । मम्रुष: । मन: । एव । ईर्ष्यो: । मृतम् । मन: ॥१८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 18; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईर्ष्या के निवारण का उपदेश।

    पदार्थ

    (यथा) जैसे (भूमिः) भूमि (मृतमनाः) मरे मनवाली [ऊसर] होकर (मृतात्) मरे से भी (मृतमनस्तरा) अधिक मरे मनवाली है। (उत) और (यथा) जैसे (मम्रुषः) मरे हुए मनुष्य का (मनः) मन है (एव) वैसे ही (ईर्ष्योः) डाह करनेवाले का (मनः) मन (मृतम्) मरा होता है ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे भूमि ऊसर हो जाने से उपजाऊ नहीं रहती और जैसे मृतक प्राणी का मन कुछ नहीं कर सकता, वैसे ही डाह करनेवाला जल-भुन कर उद्योगहीन हो जाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यथा) येन प्रकारेण (भूमिः) सर्वप्राणिभिरधिष्ठिता पृथिवी (मृतमनाः) उत्पादनशक्तिहीना। ऊषरा (मृतात्) त्यक्तप्राणात्। मृतकात् (मृतमनस्तरा) अधिकमृतमना (उत) अपि च (मम्रुषः) मृङ् प्राणत्यागे−क्वसु। मृतवतः पुरुषस्य (मनः) मनोबलम् (एव) एवमेव (ईर्ष्योः) भृमृशीङ्०। उ० १।६। इति ईर्ष्य−उ। ईर्षायुक्तस्य पुरुषस्य (मृतम्) विनष्टं भवति (मनः) ॥

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    विषय

    ईर्ष्यालु-मृतमना:

    पदार्थ

    १. (यथा) = जैसे (भूमि:) = यह भूमि (मृतमना:) = मृत मनवाली है-अचेतन है, (मृतात् मृतमनस्तरा) = मरे हुए से भी अधिक मृत मनवाली है, (उत) = और (यथा) = जैसे (म्म्रूष:) मरणासन्न पुरुष का (मन:) = मन होता है, (एव) = इसीप्रकार (ईष्यों:) = ईर्ष्यालु का (मनः मतम्) = मन मृत होता है।

    भावार्थ

    ईर्ष्या मनुष्य के मन को मार डालती है, उसे अचेतन-सा कर देती है।

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    भाषार्थ

    (यथा) जैसे (भूमिः) भूमि (मृतमनाः) मरे मन वाली है, (मृतात्) मृत की अपेक्षा भी (मृतमनस्तरा) अतिशयरूप में मरे मन वाली है, (यथा उत) और जैसे (मम्रुषः) मर गये पुरुष का (मनः) मन होता है, (एव) इसी प्रकार (ईर्ष्यो:) ईर्ष्यालु का (मनः) मन (मृतम्) मृत हो जाता है, उसकी मनन शक्ति मर जाती है।

    टिप्पणी

    [चलते-फिरते भूमि पर पादप्रहार होते, कृषि आदि द्वारा इस के शरीर को चीरा-फाड़ा जाता, इस पर मलमूत्र का त्याग किया जाता, परन्तु भूमि प्रतिक्रिया नहीं करती, क्योंकि यह मानो मृतमना है, मुत के शरीर की अपेक्षा भी अनुभूति तथा विचार से अधिक शून्या है। मृत का शरोर तो किसो समय अनुभूति और विचार सहित था, परन्तु भूमि तो सदैव अनुभूति आदि से रहित रही है। ईर्ष्यालु की ऐसी अवस्था उस के जीवित रहते ही हो जाती है, वह कर्तव्य और अकर्तव्य का विचार या विवेक नहीं कर सकता]।

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    विषय

    ईर्ष्या का निदान और उपाय।

    भावार्थ

    (यथा) जिस प्रकार (भूमिः मृतमनाः) यह भूमि, मिट्टी, मेरे दिलवाली अचेतन है और (मृतात्) यह मरे हुए मुर्दे से भी अधिक (मृतमनस्तरा) मुर्दादिल है (उत) और (यथा) जिस प्रकार (मम्रुषः मनः) मरे हुए मनुष्य का मन मर चुकता है (एवा) उसी प्रकार (ईर्ष्योः मनः मृतम्) ईर्ष्यालु पुरुष का भी मन, मनन शक्ति मर जाती है इसलिये ईष्यों नहीं करनी चाहिये।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ईर्ष्याविनाशनं देवता। १,३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Give up Jealousy

    Meaning

    Just as the desert land void of fertility is lifeless at heart, nay even less than lifeless, and as the spirit of the man on death bed is worse than dead, so is the mind of the jealous man dead.

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    Translation

    As the earth is lifeless-minded, more lifeless -minded even than the dead; as is the mind of a dying person, so lifeless is the mind of the jealous .

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    Translation

    Just as the earth is dead in consciousness yea, it is more dead in consciousness than the dead, just as the Spirit of the dead is, similarly the spirit of the jealous man is dead (with-in him).

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    Translation

    Just as the earth is dead to sense, Yea, more unconscious than the dead, so like a corpse's spirit is the spirit of the jealous man.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यथा) येन प्रकारेण (भूमिः) सर्वप्राणिभिरधिष्ठिता पृथिवी (मृतमनाः) उत्पादनशक्तिहीना। ऊषरा (मृतात्) त्यक्तप्राणात्। मृतकात् (मृतमनस्तरा) अधिकमृतमना (उत) अपि च (मम्रुषः) मृङ् प्राणत्यागे−क्वसु। मृतवतः पुरुषस्य (मनः) मनोबलम् (एव) एवमेव (ईर्ष्योः) भृमृशीङ्०। उ० १।६। इति ईर्ष्य−उ। ईर्षायुक्तस्य पुरुषस्य (मृतम्) विनष्टं भवति (मनः) ॥

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