अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 35/ मन्त्र 2
वै॑श्वान॒रो न॒ आग॑मदि॒मं य॒ज्ञं स॒जूरुप॑। अ॒ग्निरु॒क्थेष्वंह॑सु ॥
स्वर सहित पद पाठवै॒श्वा॒न॒र । न॒: । आ । अ॒ग॒म॒त् । इ॒मम् । य॒ज्ञम् । स॒ऽजू: । उप॑ । अ॒ग्नि: । उ॒क्थेषु॑ । अंह॑ऽसु ॥३५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
वैश्वानरो न आगमदिमं यज्ञं सजूरुप। अग्निरुक्थेष्वंहसु ॥
स्वर रहित पद पाठवैश्वानर । न: । आ । अगमत् । इमम् । यज्ञम् । सऽजू: । उप । अग्नि: । उक्थेषु । अंहऽसु ॥३५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
यश की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(वैश्वानरः) सब का नाशक, (सजूः) प्रीतिवाला (अग्निः) सर्वव्यापक परमेश्वर (अंहसु) प्राप्तियोग्य (उक्थेषु) प्रकथनीय गुणों में वर्तमान होकर (इमम्) इस (यज्ञम्) पूजनीय कर्म को (उप=उपेत्य) प्राप्त करके (न) हमको (आ अगमत्) प्राप्त हुआ है ॥२॥
भावार्थ
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की स्तुति गाकर हम सदा पुरुषार्थ करें ॥२॥
टिप्पणी
२−(वैश्वानरः) सर्वनायकः (नः) अस्मान् (आ अगमत्) प्राप्तवान् (इमम्) क्रियमाणम् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (सजूः) सह+जुषी प्रीतिसेवनयोः−क्विप्। ससजुषो रुः। पा० ८।२।६६। इति रुत्वम्। र्वोरुपधाया दीर्घ इकः। पा० ८।२।७६। इति दीर्घः। जुषा सह वर्तमानः। प्रीतियुक्तः (उप) उपेत्य (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (उक्थेषु) अ० २।१२।२। प्रकथनीयेषु गुणेषु (अहसु) अहि गतौ−अच्। प्राप्तव्येषु ॥
विषय
यज्ञ+स्तवन
पदार्थ
१. (वैश्वानरः) = सब मनुष्यों का हितकारी वह प्रभु (नः आगमत्) = हमें प्राप्त हो। वह प्रभु इम (यज्ञम् उप) = हमारे इस जीवन-यज्ञ में प्राप्त होकर (सजू:) = हमारे प्रति प्रीतिवाला हो। हम प्रभु के प्रीतिपात्र बन पाएँ। २. (अग्निः) = वह अग्रणी प्रभु (अंहसु) = [अहि गती] अभिगन्तव्य (उक्थेषु) = स्तोत्रों के होने पर हमें समीपता से प्राप्त हो।
भावार्थ
हम जीवन को यज्ञमय बनाएँ, प्रभु का स्तवन करें। हमें अवश्य उस वैश्वानर प्रभु का प्रेम प्राप्त होगा।
भाषार्थ
(वैश्वानरः) सब नर-नारियों का हितकारी (अग्निः) जगदग्रणी परमेश्वर, (अंहसु) पापनाशक (उक्थेषु) स्तुति मन्त्रों तथा सामगानों में (सजूः) प्रीतिवाला हुआ, (नः) हमारे ( इमम् ) इस (यज्ञम् ) उपासना यज्ञ में (उप) समीप ( आ अगमत्) आ गया है ।
टिप्पणी
[मन्त्र १ में "आ प्र यातु" द्वारा परमेश्वर से समीपता की प्रार्थना की है, और मन्त्र २ में "आ अगमत्" द्वारा वह हमारे उपासना यज्ञ में समीप आ गया है, पहिले वह अदृष्ट था, अब दृष्ट हो गया है। अंहसु= आहतीति अंहः१ (निरुक्त ४।४।२५)। जो पापी का हनन कर देता है, परन्तु वर्तमान मन्त्र में "अंहः" का अर्थ है "जो पाप का हनन कर देता है।" "अंहः" का केवल अर्थ मन्त्र में है "हनन करने वाला"]। [१. अंहतिश्च, अंहश्च, अंहुश्च "हन्तेः" निरुढोपधातु, विपरीतात् (४।४।२५) पद संख्या "तूताव" ५७। ]
विषय
ईश्वर स्तुति, प्रार्थना
भावार्थ
(वैश्वानरः) समस्त आत्माओं का हितकारी प्रभु (नः) हमारे (इयम्) इस (यज्ञम्) उपासना यज्ञ में (सजूः) प्रेम प्रदर्शन करता हुआ (उप आगमत्) आवे। वही (अग्निः) प्रकाशस्वरूप या हमारा अग्रणी (अंहसु) प्राप्त करने योग्य (उक्थेषु) प्रशंसनीय कार्यों में भी (उप) हमारा साथ दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कौशिक ऋषिः। वैश्वानरा देवता। गायत्रं छन्दः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Life of Life
Meaning
May Vaishvanara Agni, leading light of the the life of the world of humanity, constant and closest friend, come and join our yajna, accept our songs of prayer and guide us at the most critical times of our need.
Translation
The adorable Lord, benefactor of all men, has come to this sacrifice of ours with friendly feeling hearing our praise songs in the time of distress
Translation
May the All-leading Lord accept our acts of highest sacrifice and be friendly to us. May the Self-effulgent God accept our prayers of lauds.
Translation
May God, the Lover of all souls, come as a Friend to this our noble deed. May God be our companion in our desirable, praiseworthy acts.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(वैश्वानरः) सर्वनायकः (नः) अस्मान् (आ अगमत्) प्राप्तवान् (इमम्) क्रियमाणम् (यज्ञम्) पूजनीयं व्यवहारम् (सजूः) सह+जुषी प्रीतिसेवनयोः−क्विप्। ससजुषो रुः। पा० ८।२।६६। इति रुत्वम्। र्वोरुपधाया दीर्घ इकः। पा० ८।२।७६। इति दीर्घः। जुषा सह वर्तमानः। प्रीतियुक्तः (उप) उपेत्य (अग्निः) सर्वव्यापकः परमेश्वरः (उक्थेषु) अ० २।१२।२। प्रकथनीयेषु गुणेषु (अहसु) अहि गतौ−अच्। प्राप्तव्येषु ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal