अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 69/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बृहस्पतिः, अश्विनौ
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - वर्चस् प्राप्ति सूक्त
48
अश्वि॑ना सार॒घेण॑ मा॒ मधु॑नाङ्क्तं शुभस्पती। यथा॒ भर्ग॑स्वतीं॒ वाच॑मा॒वदा॑नि॒ जनाँ॒ अनु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअश्वि॑ना । सा॒र॒घेण॑ । मा॒ । मधु॑ना । अ॒ङ्क्त॒म् । शु॒भ॒: । प॒ती॒ इति॑ । यथा॑ । भर्ग॑स्वतीम् । वाच॑म् । आ॒ऽवदा॑नि । जना॑न् । अनु॑ ॥६९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्विना सारघेण मा मधुनाङ्क्तं शुभस्पती। यथा भर्गस्वतीं वाचमावदानि जनाँ अनु ॥
स्वर रहित पद पाठअश्विना । सारघेण । मा । मधुना । अङ्क्तम् । शुभ: । पती इति । यथा । भर्गस्वतीम् । वाचम् । आऽवदानि । जनान् । अनु ॥६९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
यश की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(शुभः) शुभ कर्म के (पती) पालन करनेवाले (अश्विना) हे कर्मों में व्याप्तिवाले माता-पिता ! (सारघेण) सार अर्थात् बल वा धन के पहुँचानेवाले (मधुना) ज्ञान से (मा) मुझ को (अङ्क्तम्) प्रकाशित करो। (यथा) जिससे (जनान् अनु) मनुष्यों के बीच (भर्गस्वतीम्) तेजोमयी (वाचम्) वाणी को (आवदानि) मैं बोला करूँ ॥२॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि माता-पिता से उत्तम शिक्षा पाकर मनुष्यों में सारगर्भित सत्य वचन बोलें ॥२॥
टिप्पणी
२−(अश्विना) अ० ६।३।३। कर्मसु व्याप्तिमन्तौ मातापितरौ (सारघेण) सार+घट संघाते, चुरादौ−ड। सारं घाटयति संग्राहयतीति तेन। सारस्य बलस्य धनस्य वा संग्राहकेण (मधुना) मन ज्ञाने−उ, नस्य धः। ज्ञानेन (अङ्क्तम्) अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु−लोट्। प्रकाशयतम् (शुभः) शोभनस्य कर्मणः (पती) पालकौ (यथा) येन प्रकारेण (भर्गस्वतीम्) तेजोमयीम् (वाचम्) वाणीम् (आवदानि) उच्चारयाणि (जनान्) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य ॥
विषय
मधु से माधुर्य की प्राप्ति
पदार्थ
१.हे (अश्विना) = प्राणापानो! आप (शुभस्पती) = सब शुभ का मुझमें रक्षण करनेवाले हो। (मा) = मुझे (सारघेण मधुना) = मधु-मक्खियों से तैयार किये गये मधु से (अङ्क्तम्) = कान्त जीवनवाला बनाओ। हम प्राणायाम करें और सारघ मधु का सेवन करें, इससे हमारा जीवन भी शुभ ही बनेगा। २. मुझे मधु का सेवन कराओ (यथा) = जिससे (भर्गस्वीतम्) = दीप्तिमती मधुर (वाचम्) = वाणी को (जनान् अनु) = लोगों को लक्ष्य करके (आवदानि) = उच्चारित करूँ। मैं कभी भी कटु शब्दों का प्रयोग करनेवाला न बनें।
भावार्थ
प्राणसाधना के साथ मधु का प्रयोग मुझे मधुर बनाए। इस मुध के प्रयोग से मैं भर्गस्वती वाणी का प्रयोग करूँ।
भाषार्थ
(अश्विना) हे दो अश्वियो ! (शुभस्पती) हे शुभकर्मों के स्वामियो ! (मा) मुझे (सारघेण) सरघा अर्थात् मधुमक्खी के (मधुना) मधु सदृश माधुर्य द्वारा (अङ्क्तम्) तुम दोनों सींच दो। (यथा) जिस प्रकार कि (जनान् अनु) सब जनों के प्रति, अनुकूलरूप, (भर्गस्वतीम्) माधुर्य के तेज वाली (वाचम्) वाणी को (आ वदानि) सदा मैं बोलूं।
टिप्पणी
[दो अश्वो हैं ,या तो गुरु और गुरुपत्नी, जो कि विद्याओं में व्याप्त हैं, विद्याओं को विशेषतया प्राप्त हैं। अश्व + इन् =अश्विनौ। अश्व =अश् व्याप्तौ । व्याप्ति =वि + आप्तिः, प्राप्तिः। अथवा अश्विनौ= माता पिता। अश्वः =अश्नुते व्याप्नोतीति (उणा० १।१५१, दयानन्द) "अश्नुते व्याप्नोति अध्वानम्", जो कि अध्वा अर्थात् मार्ग को शीघ्रता से समाप्त करता है]।
विषय
यश और तेज की प्रार्थना।
भावार्थ
(शुभस्पती) शुभ-उत्तम शोभा को पालन करने वाले (अश्विनौ) माता और पिता (सारघेण) मधुमक्षिका के तैयार किये हुए (मधुना) शहद से (मा) मुझे (अङ्क्तम्) आंजें, मुझे खिलावें (यथा) जिससे (जनान् अनु) समस्त लोगों के प्रति मैं बालक बड़ा होकर (भर्गस्वतीम्) दीप्ति, चमत्कार युक्त और ओजस्विनी (वाचम्) वाणी को (आवदानि) बोलूं। मां बाप बालकों को शहद खिलाया करें जिससे उनकी वाक्-शक्ति बढ़े और कफ आदि का नाश हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वर्चस्कामो यशस्कामश्चाथर्वा ऋषिः। बृहस्पतिरुताश्विनौ देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Honour and Grace
Meaning
O Ashvins, complementary harbingers of the beauty, sweetness and graces of life, beatify me with the honey sweet of the music of the bees so that I may speak the brilliant resonant voice of divine Vedic revelation to the people.
Translation
0 twin healers, lords of weal, may you anoint me with delicious bee-honey, so that 1 may utter glorious words to men.
Translation
O teacher and preacher! you are the guardian of good deeds. Please brighten me with the substantial knowledge, so that I may be able to utter resonant clear voice of the vedic hymns to mankind.
Translation
O parents, the doers of noble deeds, fill me with the knowledge that brings strength and wealth! May the voice I utter to humanity be vigorous and clear.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अश्विना) अ० ६।३।३। कर्मसु व्याप्तिमन्तौ मातापितरौ (सारघेण) सार+घट संघाते, चुरादौ−ड। सारं घाटयति संग्राहयतीति तेन। सारस्य बलस्य धनस्य वा संग्राहकेण (मधुना) मन ज्ञाने−उ, नस्य धः। ज्ञानेन (अङ्क्तम्) अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु−लोट्। प्रकाशयतम् (शुभः) शोभनस्य कर्मणः (पती) पालकौ (यथा) येन प्रकारेण (भर्गस्वतीम्) तेजोमयीम् (वाचम्) वाणीम् (आवदानि) उच्चारयाणि (जनान्) मनुष्यान् (अनु) अनुलक्ष्य ॥
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