अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - संस्फानम्
छन्दः - गायत्री
सूक्तम् - ऊर्जा प्राप्ति सूक्त
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त्वं नो॒ नभ॑सस्पत॒ ऊर्जं॑ गृ॒हेषु॑ धारय। आ पु॒ष्टमे॒त्वा वसु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । न॒: । न॒भ॒स॒: । प॒ते॒ । ऊर्ज॑म् । गृ॒हेषु॑ । धा॒र॒य॒ । आ । पु॒ष्टम् । ए॒तु॒ । आ । वसु॑ ॥७९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं नो नभसस्पत ऊर्जं गृहेषु धारय। आ पुष्टमेत्वा वसु ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । न: । नभस: । पते । ऊर्जम् । गृहेषु । धारय । आ । पुष्टम् । एतु । आ । वसु ॥७९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सर्वसम्पत्ति पाने का उपदेश।
पदार्थ
(नभसस्पते) हे सूर्यलोक के स्वामी ! (त्वम्) तू (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (ऊर्जम्) बल बढ़ानेवाला अन्न (धारय) धारण कर। (पुष्टम्) पुष्टि (आ) और (वसु) धन (आ एतु) चला आवे ॥२॥
भावार्थ
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर की उपासना करके जो मनुष्य सूर्य की वृष्टि ताप आदि से उपकार लेते हैं, वे ही सब प्रकार की वृद्धि और धन प्राप्त करते हैं ॥२॥
टिप्पणी
२−(त्वम्) (नः) अस्माकम् (नभसस्पते) हे सूर्यलोकस्य पालक (ऊर्जम्) बलकरमन्नम् (गृहेषु) (धारय) स्थापय (आ) चार्थे (पुष्टम्) पुष्टिम्। वृद्धिम् (ऐतु) आगच्छतु (वसु) धनम् ॥
विषय
ऊर्ज, पुष्टं, वसु
पदार्थ
१. हे (नभसस्पते) = हवि द्वारा धुलोक का पालन करनेवाले यज्ञाग्ने! (त्वम्) = तु (न:) = हमारे (गृहेषु) = घरों में (ऊर्जम्) = बलकर, रसवत् अन्न को (धारय) = धारण कर । २. तेरे द्वारा हमें (पुष्टम्) = स्वस्थ, पुष्टियुक्त प्रजा, पशु (आ एतु) = सर्वथा प्राप्त हों तथा (वसु आ) = निवास के लिए आवश्यक उत्तम पदार्थ व धन प्राप्त हो।
भावार्थ
यज्ञों से अन्न-रस, पुष्ट प्रजा, पशु व वसुओं की प्राप्ति होती है।
भाषार्थ
(नभसस्पते) हे मेघ के पति ! (त्वम) तू (न: गृहेषु) हमारे घरों में (ऊर्जम्) बलदायक और प्राणप्रद अन्न (धारय) स्थापित कर, जिस से (पुष्टम्) पुष्ट अश्न (आ एतु) आए, (वसु) और धन (आ एतु) आए ।
टिप्पणी
[ऊर्जम्= ऊर्क् अन्ननाम (निघं० २।७)। ऊर्ज बलप्राणनयोः (चुरादिः)। पुष्ट अन्न के विक्रय द्वारा वसु की प्राप्ति होती है]।
विषय
प्रचुर अन्न की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (नभसः पते) नभ, अन्तरिक्ष के स्वामिन् ! (त्वम्) तू (नः) हमारे (गृहेषु) घरों में (ऊर्जम्) पुष्टिकारक अन्न को (धारय) भर। और (पुष्टम्) हृष्ट पुष्ट, (वसु) सम्पन्न, धन प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। संस्फानो देयता। १-२ गायत्र्यौ, ३ त्रिपदा प्राजापत्या जगती। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Protection
Meaning
O Lord of the realms of light and glory, bring energy of life into our homes, let growth come, let wealth, home, excellence and peace and stability come to us.
Translation
O lord of clouds, may: you maintain vigour (food-grains) in our homes. May the nourishment come to us and also the wealth
Translation
Let this master-force of sky bestow vigor and strength (through plenty of corn) in our abodes and let strength and wealth visit to us.
Translation
O God, the Lord of the Sun, fill our abodes with nutritious food stuffs. Let prosperity and wealth come to us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(त्वम्) (नः) अस्माकम् (नभसस्पते) हे सूर्यलोकस्य पालक (ऊर्जम्) बलकरमन्नम् (गृहेषु) (धारय) स्थापय (आ) चार्थे (पुष्टम्) पुष्टिम्। वृद्धिम् (ऐतु) आगच्छतु (वसु) धनम् ॥
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