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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 80 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 80/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अरिष्टक्षयण सूक्त
    34

    ये त्रयः॑ कालका॒ञ्जा दि॒वि दे॒वा इ॑व श्रि॒ताः। तान्सर्वा॑नह्व ऊ॒तये॒ऽस्मा अ॑रि॒ष्टता॑तये ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । त्रय॑: । का॒ल॒का॒ञ्जा: । दि॒वि । दे॒वा:ऽइ॑व । श्रि॒ता: । तान् । सर्वा॑न् । अ॒ह्वे॒ । ऊ॒तये॑ । अ॒स्मै । अ॒रि॒ष्टऽता॑तये ॥८०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये त्रयः कालकाञ्जा दिवि देवा इव श्रिताः। तान्सर्वानह्व ऊतयेऽस्मा अरिष्टतातये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । त्रय: । कालकाञ्जा: । दिवि । देवा:ऽइव । श्रिता: । तान् । सर्वान् । अह्वे । ऊतये । अस्मै । अरिष्टऽतातये ॥८०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 80; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा की महिमा का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (कारकाञ्जाः) काल अर्थात् सब की संख्या करनेवाले परमेश्वर के प्रकाश (दिवि) आकाश में (श्रिताः) आश्रित (त्रयः) तीन (देवाः इव) देवताओं [अग्नि, वायु और सूर्य−निरु० ७।५] के समान वर्तमान हैं, (तान्) उस (सर्वान्) सब [परमेश्वर के प्रकाशों] को (अस्मै) इस [जीव] के हित के लिये (ऊतये) रक्षा करने और (अरिष्टतातये) क्षेम करने को (अह्वे) मैंने बुलाया है ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य स्वयंप्रकाशस्वरूप परमात्मा की महिमायें सर्वत्र साक्षात् करके अपनी रक्षा करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(ये) (त्रयः) त्रिसंख्याकाः (कालकाञ्जाः) कालक+अञ्जाः। कल गतौ संख्याने च ण्यन्तात्−पचाद्यच्, स्वार्थे कन्। यद्वा। ण्वुल्तृचौ। पा० ३।१।१३३। इति कल−ण्वुल्। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणादिषु−घञ्। काल−कस्य कालस्य सर्वगणकस्य परमेश्वरस्य अञ्जाः प्रकाशाः (दिवि) आकाशे (देवः) यो देवः सा देवता−निरु० ७।१५। तिस्र एव देवता इति नैरुक्ताः। अग्निः पृथिवीस्थानो वायुर्वेन्द्रो वाऽन्तरिक्षस्थानः सूर्यो द्युस्थानः−निरु० ७।५। (इव) यथा (श्रिताः) आश्रिताः (तान्) प्रसिद्धान् (सर्वान्) कालकाञ्जान् (अह्वे) अ० ४।२७।१। ह्वेञ् आह्वाने−लुङ्। आहूतवानस्मि (ऊतये) रक्षार्थम् (अस्मै) अस्य जीवस्य हिताय (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। अरिष्ट−तातिल् करोत्यर्थे। क्षेमकरणाय ॥

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    विषय

    त्रयः कालकाजाः

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (त्रयः) = तीन (कालकाजा:) = [कालक-अजाः] उस सर्वगणक [कल संख्याने] सबका काल करनेवाले प्रभु के प्रकाश हैं-'सूर्य, विद्युत् व अग्नि' रूप से तीन ज्योतियाँ हैं, जो दिवि-इस विशाल आकाश में (देवा: इव श्रिता:) = प्रकाशमय पिण्डों के समान आश्रित हैं, (तान् सर्वान्) = उन सबको (ऊतये) = रक्षण के लिए (अह्वे) = पुकारता हूँ। (अस्मै) = इस (अरिष्ठतातये) = अहिंसन के विस्तार के लिए मैं इन प्रकाशों को पुकारता हूँ। २. मेरा मस्तिष्क ज्ञानसूर्य से प्रकाशित हो, मेरा हृदयान्तरिक्ष वासनाओं पर विद्युत् के प्रहारवाला हो, मेरा शरीर उचित अग्नितत्त्ववाला हो, ऐसा होने पर ही मैं अहिंसित होऊँगा।

    भावार्थ

    हम 'सूर्य, विद्युत् व अग्नि' रूप प्रभु की ज्योतियों को पुकारें। इन्हें जीवन में धारण करें। हमारा मस्तिष्क ज्ञानसूर्य से दीस, हृदयान्तरिक्ष वासनाओं पर विद्युत्-प्रहार करनेवाला व शरीर उचित अग्नितत्त्ववाला हो।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (त्रयः) तीन (कालकाञ्जा:) काल को अभिव्यक्त करनेवाले (दिवि) द्युलोक में (देवाः) अन्य देवों अर्थात् द्योतमान तारा-नक्षत्रों (इव) के सदृश (श्रिताः) आश्रित हैं, (तान् सर्वान्) उन सब अर्थात् दोनों का (अह्व) मैं आह्वान करता हूँ (ऊतये) रक्षा के लिये और (अस्मै अरिष्टतातये) इस अविनाश के करने के लिये या विस्तार के लिये।

    टिप्पणी

    [कालकाञ्जाः = काल+ क (स्वार्थे) + अञ्जू व्यक्तिभ्रक्षणकान्तिगतिषु (रुधादिः)। ये तीन हैं सूर्य, चन्द्रमा तया सप्तर्षिमण्डल। तीनों द्वारा काल की अभिव्यक्ति होती है। राष्ट्रिय तथा सामाजिक और वैयक्तिक कालगणना के लिये इन तीनों१ कालों का आह्वान करना चाहिये, इस से लेखे ठीक रहते हैं, उनका विनाश नहीं होता। अथवा कालकाञ्जा:= काल + कृ (डः औणादिकः (२।६७), डित्वात् टिलोपः)+ अञ्जू (अभिव्यक्तिः)२]। [१. जैसे कि वर्तमान में विक्रम, ईसा, शक आदि कालों का प्रयोग होता है वैसे सौरकाल, चान्द्रकाल और सप्तर्पिकाल का प्रयोग व्यवहार में चाहिये। २. काल का निर्माण करने वाले तथा उस की अभिव्यक्ति करने वाले तीन, सूर्य, चन्द्रमा, सप्तर्षिमण्डल]

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    विषय

    कालकञ्ज नक्षत्रों के दृष्टान्त से प्राणों का वर्णन।

    भावार्थ

    (ये) जो (त्रयः) तीन (कालकाञ्जाः) कालकाञ्ज नामक तारे, मृगशिरा नक्षत्र मण्डल में (दिवि) द्युलोक, आकाश में (श्रिताः) आश्रय पाये हुए हैं। वे (देवाः इव) इस मूर्धास्थल शिरोभाग में विद्यमान तीन प्राणों की शक्तियों अर्थात् चक्षु, वाणी और श्रोत्र के समान हैं। इसी प्रकार आत्मा में और भी प्राण गुंथे हुए हैं। वे सब भी कालकाञ्ज अर्थात् कलना, चेतनाशील कञ्ज पद्म = सहस्रकमल रूप मूर्धागत मस्तिष्क शक्ति के पुत्रवत् हैं (तान् सर्वान्) उन सबको (अस्मै) इस पुरुषस्वरूप आत्मा के (अरिष्टताये) कल्याण ले लिये और (ऊतये) रक्षा के लिये (अह्वे) पुकारता हूं उनका उपदेश करता हूं। मृगशिरा नक्षत्र मंडल, कालपुरुष मण्डल भी क़हाता है। उसके बीच के तीन तारे कालकाञ्ज कहाते हैं।

    टिप्पणी

    तैतिरीय ब्राह्मण में—“कालकञ्जा वै नामासुरा आसन्। ते सुवर्गाय लोकाय अग्निमचिन्वत” इत्यादि आख्यायिका में लिखा है—स इन्द्र इष्टकामावृहत्। ते अवाकीर्यन्त। य अवाकीर्यंन्त त उर्णनाभयोऽभवन्। द्वावुदपतताम्। तौ दिव्यौ श्वानावभवताम्॥ इत्यादि। यह ऐतिह्य सृष्टिक्रम के सिद्धान्त को स्पष्ट करता हुआ अध्यात्म में पंच प्राणों को स्पष्ट करता है। अर्थात् कालपुरुष मण्डल के ‘मृगशिरा’ भाग में तीनों तारे कालकञ्ज हैं, उनमें से बहुत से तारे एक नेबुला या मूल मेघ या निहारिका से आवृत हैं। जिनको तैत्तिरीय ब्राह्मण के शब्दों में ‘ऊर्णनाभि’ शब्द से कहा है। और उनमें दो ‘श्वा’ एक ‘कैनिस मेजर’ और दूसरा ‘कैनिस माइनर’ सब मिलकर ‘कालकाञ्ज’ कहलाते हैं। उसी प्रकार अध्यात्म में शिरो भाग में या इस काल = चेतनमय देह में कान, आंख, मुख ये तीन ‘कालकाञ्ज’ हैं और इनके साथ दोनों प्राण दो श्वान हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमा देवता। १ भुरिग अनुष्टुप्, २ अनुष्टुप्, ३ प्रस्तार पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Heavenly Glory

    Meaning

    Those three orders of the lord of time, heat, light and wind, agni, sun and vayu, that abide in the heavenly regions like divinities, I invoke them for the protection and well being of this humanity.

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    Translation

    The three kalakanjas (time-indicators), that stay in the sky ‘like the bounties of Nature, all of them we invoke for protection and secure this man from harm.

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    Translation

    For the benefit and happiness of this worldly man I, the scientist tell of those three stars named Kalkanjah, which have their stations in the heaven.

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    Translation

    The luster’s of God, the Enumerator of all substances, are present in the firmament like three gods. I invoke all of them for the security and betterment of this soul.

    Footnote

    I: A learned person. Three gods: fire, air, sun, vide Nirukta, 7-5. Sayāna interprets Kālkānjas as demons. This interpretation savors of history, and is hence inadmissible, as the Vedas .are free from history. Pt. Damodar Sātayalekar interprets the word as three seasons, Summer, Rainy, Winter.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(ये) (त्रयः) त्रिसंख्याकाः (कालकाञ्जाः) कालक+अञ्जाः। कल गतौ संख्याने च ण्यन्तात्−पचाद्यच्, स्वार्थे कन्। यद्वा। ण्वुल्तृचौ। पा० ३।१।१३३। इति कल−ण्वुल्। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणादिषु−घञ्। काल−कस्य कालस्य सर्वगणकस्य परमेश्वरस्य अञ्जाः प्रकाशाः (दिवि) आकाशे (देवः) यो देवः सा देवता−निरु० ७।१५। तिस्र एव देवता इति नैरुक्ताः। अग्निः पृथिवीस्थानो वायुर्वेन्द्रो वाऽन्तरिक्षस्थानः सूर्यो द्युस्थानः−निरु० ७।५। (इव) यथा (श्रिताः) आश्रिताः (तान्) प्रसिद्धान् (सर्वान्) कालकाञ्जान् (अह्वे) अ० ४।२७।१। ह्वेञ् आह्वाने−लुङ्। आहूतवानस्मि (ऊतये) रक्षार्थम् (अस्मै) अस्य जीवस्य हिताय (अरिष्टतातये) अ० ३।५।५। अरिष्ट−तातिल् करोत्यर्थे। क्षेमकरणाय ॥

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