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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 81/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - आदित्यः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भाधान सूक्त
    73

    परि॑हस्त॒ वि धा॑रय॒ योनिं॒ गर्भा॑य॒ धात॑वे। मर्या॑दे पु॒त्रमा धे॑हि॒ तं त्वमा ग॑मयागमे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ऽहस्त । वि । धा॒र॒य॒ । योनि॑म् । गर्भा॑य । धात॑वे । मर्या॑दे । पु॒त्रम् । आ । धे॒हि॒ । तम् । त्वम् । आ । ग॒म॒य॒ । आ॒ऽग॒मे॒ ॥८१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परिहस्त वि धारय योनिं गर्भाय धातवे। मर्यादे पुत्रमा धेहि तं त्वमा गमयागमे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परिऽहस्त । वि । धारय । योनिम् । गर्भाय । धातवे । मर्यादे । पुत्रम् । आ । धेहि । तम् । त्वम् । आ । गमय । आऽगमे ॥८१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 81; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    उत्तम गर्भधारण का उपदेश।

    पदार्थ

    (परिहस्त) हे हाथ का सहारा देनेवाले पुरुष ! (योनिम्) घर को (गर्भाय धातवे) गर्भ पुष्ट करने के लिये (वि) विशेष करके (धारय) सँभाल। (मर्यादे) हे मर्यादायुक्त पत्नी ! (पुत्रम्) [गर्भस्थ] कुलशोधक सन्तान को (आ) भले प्रकार से (धेहि) पुष्ट कर। (त्वम्) तू (तम्) उस [सन्तान] को (आगमे) योग्य समय पर (आ गमय) उत्पन्न कर ॥२॥

    भावार्थ

    उचित गृह आदि से यथावत् गर्भरक्षा करके पति-पत्नी सावधान रहें, जिससे बालक पूरे दिनों में उत्पन्न होवे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(परिहस्त) हे प्रसृतहस्त सहायार्थम् (वि) विशेषेण (धारय) स्थापय (योनिम्) गृहम्−निघ० ३।४। (गर्भाय) कर्मणि चतुर्थी। गर्भम् (धातवे) धाञस्तुमर्थे तवेन्। धातुं पोषयितुम् (मर्यादे) मर्यादा−अर्शआद्यच्। हे मर्यादायुक्ते पत्नि (पुत्रम्) अ० १।११।५। गर्भस्थं कुलशोधकं सन्तानम् (आ) समन्तात् (धेहि) पोषय (तम्) गर्भम् (त्वम्) (आ गमय) उत्पादय (आगमे) आगमनकाले। उत्पत्तियोग्यस्थाने ॥

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    विषय

    मर्यादा से युक्त जीवनवाली माता

    पदार्थ

    १. हे (परिहस्त) = हाथ का सहारा देनेवाले पुरुष! तु (योनिम्) = सन्तान को जन्म देनेवाली इस पत्नी को (विधारय) = विशेषरूप में धारण करनेवाला हो। तू इसमें (गर्भाय धातवे) = गर्भाधान करनेवाला हो। २. तू पत्नी से यही कह कि (मर्यादे) = प्रत्येक कार्य को मर्यादा में करनेवाली तू (पुत्रम् आधेहि) = गर्भस्थ सन्तान का सब प्रकार से सम्यक् धारण कर। (तम्) = उस सन्तान को (त्वम्) = तू (आगमे) = ठीक समय पर (आगमय) = संसार में लानेवाली हो-जन्म देनेवाली हो।

     

    भावार्थ

    पति को पत्नी-ग्रहण उत्तम सन्तान के लिए ही करना है। पत्नी को बड़ा मर्यादित जीवन बिताते हुए गर्भावस्था में सन्तान का सम्यक् पोषण करना है और समय पर जन्म देना है।

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    भाषार्थ

    (परिहस्त) हे पत्नी के हस्त का ग्रहण करनेवाले पति ! (गर्भाय धातवे) गर्भाधान के लिये (योनिम् विधारय) योनि का विशेषरूप में तू धारण-पोषण कर। (मर्यादे) और हे मर्यादे ! (पुत्रमाधेहि) तू पुत्र का आधान कर, (तम्) उस पुत्र को (त्वम्) तू (आगमे) आगमनकाल में, प्रसवकाल में (आगमय) हमें प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    [गर्भाधान से पूर्व पत्नी की योनि परिपुष्ट होनी चाहिये। निर्बलावस्था में गर्भाधान होने पर सन्तान निर्बल पैदा होती, और गर्भपात की आंशका होती है। गर्भाधान की मर्यादा से गर्भाधान होने पर पुत्रोत्पति होती है। मर्यादा की तिथियों का निर्देश मनुस्मृति में हुआ है। आगमन काल है १० मासों का काल। परिहस्त = परिगृहीत हस्त, मध्यपदलोपी समास]।

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    विषय

    पति पत्नी का पाणि-ग्रहण, सन्तानोत्पादन कर्त्तव्यों का उपदेश।

    भावार्थ

    (परि-हस्त) जाया या पत्नी का हस्त ग्रहण करने वाले हे पते ! तू (योनिम्) पुत्रों को उत्पन्न करने वाली स्त्री का (गर्भाय) गर्भगत सन्तान के (धातवे) धारण कराने और पोषण करने के लिये (वि धारय) विशेष रूप से पालन कर। पति अपनी पत्नी को आज्ञा देता है कि हे (मर्यादे) मर्यादा में रहने वाली वा ‘मर्य’ पुरुष को अपनाने वाली पत्नि ! तू (पुत्रम्) पुत्र को (आधेहि) धारण कर। (तम्) और उस पुत्र को (आगमे) मेरे सहवास में (आगमय) उत्पन्न कर अथवा (तम् आगमे आगमय) उस पुत्र को आगम अर्थात् उत्पन्न होने के उचित अवसर पर जब शरीर की स्वाभाविक प्रवृत्ति उत्पन्न करने की आज्ञा दे तब उत्पन्न कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    त्वष्टा ऋषिः। मन्त्रोक्ता उत आदित्यो देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Conjugal Love

    Meaning

    O expectant mother, hold the hand of support. Strengthen the womb to sustain the foetus and, O observer of the discipline of motherhood, hold the baby till it is mature for natural birth.

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    Translation

    O bangle, keep the womb in proper condition for holding the embryo. O wife, may you conceive a desired son and bring him forth in due course.

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    Translation

    O husband! (the grasper of hands) prepare accordantly the mother for the Child’s birth. O Wife! (The lady grasping the hands of man as her husband) bring forth the boy and make him come hither with me.

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    Translation

    O husband, the holder of my hand in marriage, feed well, me, the progenitor of progeny, that I may develop the embryo. O abstemious wife, conceive the child, and give birth to the infant at the proper time.

    Footnote

    At the proper time; child should be born in due time, not premature.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(परिहस्त) हे प्रसृतहस्त सहायार्थम् (वि) विशेषेण (धारय) स्थापय (योनिम्) गृहम्−निघ० ३।४। (गर्भाय) कर्मणि चतुर्थी। गर्भम् (धातवे) धाञस्तुमर्थे तवेन्। धातुं पोषयितुम् (मर्यादे) मर्यादा−अर्शआद्यच्। हे मर्यादायुक्ते पत्नि (पुत्रम्) अ० १।११।५। गर्भस्थं कुलशोधकं सन्तानम् (आ) समन्तात् (धेहि) पोषय (तम्) गर्भम् (त्वम्) (आ गमय) उत्पादय (आगमे) आगमनकाले। उत्पत्तियोग्यस्थाने ॥

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