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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 2
    ऋषिः - भृगुः देवता - सविता छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - द्रविणार्थप्रार्थना सूक्त
    50

    धा॒ता द॑धातु दा॒शुषे॒ प्राचीं॑ जी॒वातु॒मक्षि॑ताम्। व॒यं दे॒वस्य॑ धीमहि सुम॒तिं वि॒श्वरा॑धसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    धा॒ता । द॒धा॒तु॒ । दा॒शुषे॑ । प्राची॑म् । जी॒वातु॑म् । अक्षि॑ताम् । व॒यम् । दे॒वस्य॑ । धी॒म॒हि॒ । सु॒ऽम॒तिम् । वि॒श्वऽरा॑धस: ॥१८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    धाता दधातु दाशुषे प्राचीं जीवातुमक्षिताम्। वयं देवस्य धीमहि सुमतिं विश्वराधसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    धाता । दधातु । दाशुषे । प्राचीम् । जीवातुम् । अक्षिताम् । वयम् । देवस्य । धीमहि । सुऽमतिम् । विश्वऽराधस: ॥१८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    गृहस्थ के कर्म का उपदेश।

    पदार्थ

    (धाता) सबका पोषण करनेवाला ईश्वर (दाशुषे) उदारचित पुरुष को (प्राचीम्) अच्छे प्रकार आदर योग्य (अक्षिताम्) अक्षय (जीवातुम्) जीविका (दधातु) देवे। (विश्वराधसः) सर्वधनी (देवस्य) प्रकाशस्वरूप ईश्वर की (सुमतिम्) सुमति [यथावत् विषयवाली बुद्धि] को (वयम्) हम (धीमहि) धारण करें ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर के धारण पोषण आदि गुणों के चिन्तन से बुद्धि बढ़ा कर धनी और बली होवें ॥२॥ यह मन्त्र कुछ भेद से स्वामी दयानन्द कृत संस्कारविधि, सीमन्तोन्नयन में और निरुक्त ११।११। में आया है ॥

    टिप्पणी

    २−(धाता) सर्वपोषकः (दधातु) ददातु (दाशुषे) अ० ४।२४।१। दानशीलाय (प्राचीम्) प्रकर्षेण पूज्याम् (जीवातुम्) अ० ६।५।२। जीविकाम्-निरु० ११।११। (अक्षिताम्) अक्षीणाम् (वयम्) पुरुषार्थिनः (देवस्य) प्रकाशस्वरूपस्य (धीमहि) डुधाञ् धारणपोषणयोः-विधिलिङ्। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वाच्छप् न। आतो लोप इटि च। पा० ६।४।६४। आकारलोपः। दधीमहि। धरेम (सुमतिम्) कल्याणीं मतिम् (विश्वराधसः) सर्वधनिनः ॥

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    विषय

    सुमति

    पदार्थ

    १. (धाता) = सबका विधारक देव, (दाशुषे) = हवि देनेवाले यजमान के लिए (प्राचीम्) = प्रकृष्ट गमनवाली, उत्तम मार्ग पर ले-चलनेवाली, (जीवातुम्) = जीवनकारिणी, जीवन की औषधभूत (अक्षिताम्) = अनुपक्षीण, क्षीण न होने देनेवाली सम्पत्ति को (दधातु) = हमारे लिए धारण करे। २. (वयम्) = हम (विश्वराधस:) = सब कार्यों को सिद्ध करनेवाले (देवस्य) = प्रकाशमय प्रभु की (सुमतिम्) = कल्याणी मति को (धीमहि) = धारण करते हैं।

    भावार्थ

    गतमन्त्र से यहाँ प्रथम पाद में 'रयिम्' शब्द का अनुवर्तन है। प्रभु हमें सम्पत्ति दें, जोकि हमारी अग्रगति की साधक हों, जीवन की रक्षक हों तथा हमें क्षीण न होने दें। साथ ही हम प्रभु की सुमति का भी धारण करे, ताकि यह सम्पत्ति हमें विलास की और न ले जाए।

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    भाषार्थ

    (धाता) धारण-पोषण करने वाला परमेश्वर (दाशुषे) दान करने वाले के लिये, (प्राचीम्) प्रगतिदायक (अक्षिताम्) न क्षीण होने वाली (जीवातुम्) जीवनकारिणी सम्पत्ति (दधातु) दे, या उसे परिपुष्ट करता रहे। (वयम्) हम (विश्वराधसः) सब को धन देने वाले (देवस्य) परमेश्वर की (सुमतिम्) इस सुमति का (धीमहि) ध्यान करें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र (१) में प्रभूत धन के होने पर भी उपराम वृत्ति का वर्णन हुआ है। "दाशुषे" द्वारा भी धन प्राप्त करने वाले की दान भावना द्वारा उपराम वृत्ति को सूचित किया है। यह उपराम वृत्ति सुमति है, जिसे कि "विश्वराधस्" ने प्रदान किया है, –इसे हमें सदा ध्यान में रखना चाहिये। राधः धननाम (निघं० २।१०)]।

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    विषय

    ईश्वर से ऐश्वर्य की प्रार्थना।

    भावार्थ

    (धाता) सब का धारणकर्त्ता, पालक, पोषक प्रभु (दाशुषे) अपने को समर्पण करने वाले अथवा सब को दान करनेवाले जीव के लिये (प्राचीम्) अति उत्तम रीति से प्राप्त होनेवाली (अक्षिताम्) अक्षय (जीवातुम्) जीवन शक्ति को (दधातु) दे। (वयं) हम (विश्व-राधसः) समस्त धनों के स्वामी (देवस्य) प्रकाशस्वरूप, प्रभु, देव की (सुमतिम्) उत्तम मनन करने योग्य शक्ति का (धीमहि) ध्यान करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। धाता सविता देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ अनुष्टुप्। ३, ४ त्रिष्टुभौ। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prayer for a Happy Home

    Meaning

    May Dhata, lord sustainer of the universe, bless the generous giver with prime life and vitality of inviolable order. Let us pray for the wisdom and goodwill of the divine gracious lord of universal perfection, power and prosperity.

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    Translation

    May the ordainer Load assign to the sacrificer an everflourishing and never-exhausting life. May we receive the friendly grace of the Lord, who has all the riches (visva radha sah)

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.18.2AS PER THE BOOK

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    Translation

    May the ordainer of the world give to munificent man praise-worthy immortal life and may we obtain the wisdom of Divinity who is possessor of all powers and virtues.

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    Translation

    May God grant honorable, imperishable life to a sacrificing soul. May we obtain the favor of God, the Lord of wealth.

    Footnote

    imperishable: Not to be finished earlier, long, full span of life.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(धाता) सर्वपोषकः (दधातु) ददातु (दाशुषे) अ० ४।२४।१। दानशीलाय (प्राचीम्) प्रकर्षेण पूज्याम् (जीवातुम्) अ० ६।५।२। जीविकाम्-निरु० ११।११। (अक्षिताम्) अक्षीणाम् (वयम्) पुरुषार्थिनः (देवस्य) प्रकाशस्वरूपस्य (धीमहि) डुधाञ् धारणपोषणयोः-विधिलिङ्। छन्दस्युभयथा। पा० ३।४।११७। आर्धधातुकत्वाच्छप् न। आतो लोप इटि च। पा० ६।४।६४। आकारलोपः। दधीमहि। धरेम (सुमतिम्) कल्याणीं मतिम् (विश्वराधसः) सर्वधनिनः ॥

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