Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 41 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 41/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अत्रिः देवता - अत्रिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - धैवतः

    को नु वां॑ मित्रावरुणावृता॒यन्दि॒वो वा॑ म॒हः पार्थि॑वस्य वा॒ दे। ऋ॒तस्य॑ वा॒ सद॑सि॒ त्रासी॑थां नो यज्ञाय॒ते वा॑ पशु॒षो न वाजा॑न् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कः । नु । वा॒म् । मि॒त्रा॒व॒रु॒णौ॒ । ऋ॒त॒ऽयन् । दि॒वः । वा॒ । म॒हः । पार्थि॑वस्य । वा॒ । दे । ऋ॒तस्य॑ । वा॒ । सद॑सि । त्रासी॑थाम् । नः॒ । य॒ज्ञ॒ऽय॒ते । वा॒ । प॒शु॒ऽसः । न । वाजा॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    को नु वां मित्रावरुणावृतायन्दिवो वा महः पार्थिवस्य वा दे। ऋतस्य वा सदसि त्रासीथां नो यज्ञायते वा पशुषो न वाजान् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कः। नु। वाम्। मित्रावरुणौ। ऋतऽयन्। दिवः। वा। महः। पार्थिवस्य। वा। दे। ऋतस्य। वा। सदसि। त्रासीथाम्। नः। यज्ञऽयते। वा। पशुऽसः। न। वाजान् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 41; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 13; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    हे (मित्रावरुणौ) प्राण और उदान वायु के सदृश वर्त्तमान पढ़ने और पढ़ानेवाले जनो ! (वाम्) आप दोनों और (दिवः) प्रकाशों को (कः) कौन (ऋतायन्) सत्य का आचरण करता हुआ (वा) वा (पार्थिवस्य) पृथिवी में विदितजन के (महः) तेज को कौन (नु) शीघ्र जाने (वा) वा (दे) प्रकाशमान विद्वान् जनो ! (ऋतस्य) सत्य की (सदसि) सभा में (त्रासीथाम्) रक्षा करो (वा) वा (यज्ञायते) यज्ञ की कामना करते हुए के लिये (नः) हम लोगों की रक्षा करिये (वा) वा (पशुषः) पशुओं और (वाजान्) अन्नों के (न) सदृश हम लोगों के लिये भोगों को प्राप्त कराइये ॥१॥

    भावार्थ - हे विद्वानो ! जो आप लोग पृथिवी आदि पदार्थों की विद्या को जानते हैं, तो हम लोगों को उपदेश देवें और सभा में बैठ के सत्य न्याय को करें ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top