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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 20 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 20/ मन्त्र 5
    ऋषिः - सोभरिः काण्वः देवता - मरूतः छन्दः - ककुबुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अच्यु॑ता चिद्वो॒ अज्म॒न्ना नान॑दति॒ पर्व॑तासो॒ वन॒स्पति॑: । भूमि॒र्यामे॑षु रेजते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अच्यु॑ता । चि॒त् । वः॒ । अज्म॑न् । आ । नान॑दति । पर्व॑तासः । वन्चस्पतिः॑ । भूमिः॑ । यामे॑षु । रे॒ज॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अच्युता चिद्वो अज्मन्ना नानदति पर्वतासो वनस्पति: । भूमिर्यामेषु रेजते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अच्युता । चित् । वः । अज्मन् । आ । नानदति । पर्वतासः । वन्चस्पतिः । भूमिः । यामेषु । रेजते ॥ ८.२०.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 20; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 36; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    हे सेनाजनों ! (वः) आपके (अज्मन्) गमन से (अच्युताचित्) सुदृढ और अपतनशील भी (पर्वतासः) पर्वत (वनस्पतिः) और वृक्षादिक भी (नानदति) अत्यन्त शब्द करने लगते हैं (यामेषु) आपके गमन से (भूमिः) पृथिवी भी (रेजते) काँपने लगती है ॥५ ॥

    भावार्थ - इससे यह सूचित किया गया है कि यदि सेना उच्छृङ्खल हो जाय तो जगत् की बड़ी हानि होती है, अतः उसका शासक देश का परमहितैषी और स्वार्थविहीन हो ॥५ ॥

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