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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 23/ मन्त्र 30
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - अग्निः छन्दः - विराडुष्निक् स्वरः - ऋषभः

    अग्ने॒ त्वं य॒शा अ॒स्या मि॒त्रावरु॑णा वह । ऋ॒तावा॑ना स॒म्राजा॑ पू॒तद॑क्षसा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । त्वम् । य॒शाः । अ॒सि॒ । आ । मि॒त्रावरु॑णा । व॒ह॒ । ऋ॒तऽवा॑ना । स॒म्ऽराजा॑ । पू॒तऽद॑क्षसा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने त्वं यशा अस्या मित्रावरुणा वह । ऋतावाना सम्राजा पूतदक्षसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । त्वम् । यशाः । असि । आ । मित्रावरुणा । वह । ऋतऽवाना । सम्ऽराजा । पूतऽदक्षसा ॥ ८.२३.३०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 23; मन्त्र » 30
    अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    (अग्ने+त्वम्) हे सर्वाधार ! तू (यशाः+असि) परम यशस्वी है, इसलिये हमारे (मित्रा+वरुणा) ब्राह्मण और क्षत्रिय का (आवह) धारण-पोषण कर, जो (ऋतावाना) तेरे सत्य नियम के अनुसार चलनेवाले (सम्+राजा) समान दृष्टि से सबके ऊपर शासन करनेवाले (पूतदक्षसा) और पवित्र बलधारक हैं ॥३० ॥

    भावार्थ - अन्त में ब्राह्मण और क्षत्रिय जाति की रक्षा के लिये प्रार्थना करके इस सूक्त की समाप्ति करते हैं ॥३० ॥

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