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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 39/ मन्त्र 6
    ऋषिः - नाभाकः काण्वः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒ग्निर्जा॒ता दे॒वाना॑म॒ग्निर्वे॑द॒ मर्ता॑नामपी॒च्य॑म् । अ॒ग्निः स द्र॑विणो॒दा अ॒ग्निर्द्वारा॒ व्यू॑र्णुते॒ स्वा॑हुतो॒ नवी॑यसा॒ नभ॑न्तामन्य॒के स॑मे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः । जा॒ता । दे॒वाना॑म् । अ॒ग्निः । वे॒द॒ । मर्ता॑नाम् । अ॒पी॒च्य॑म् । अ॒ग्निः । सः । द्र॒वि॒णः॒ऽदाः । अ॒ग्निः । द्वारा॑ । वि । ऊ॒र्णु॒ते॒ । सुऽआ॑हुतः । नवी॑यसा । नभ॑न्ताम् । अ॒न्य॒के । स॒मे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्जाता देवानामग्निर्वेद मर्तानामपीच्यम् । अग्निः स द्रविणोदा अग्निर्द्वारा व्यूर्णुते स्वाहुतो नवीयसा नभन्तामन्यके समे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः । जाता । देवानाम् । अग्निः । वेद । मर्तानाम् । अपीच्यम् । अग्निः । सः । द्रविणःऽदाः । अग्निः । द्वारा । वि । ऊर्णुते । सुऽआहुतः । नवीयसा । नभन्ताम् । अन्यके । समे ॥ ८.३९.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 39; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अग्निः) सर्वाधार वह परमात्मा (देवानाम्+जाता+वेद) सूर्य्यादि देवों के जन्म जानता है (अग्निः) वह देव (मर्तानाम्+अपीच्यम्) मनुष्यों की गुह्य बातों को भी जानता है । (सः+अग्निः+द्रविणोदाः) वह अग्नि सब प्रकार का धनदाता है । (अग्निः) वह देव (द्वारा) सर्व पदार्थों का द्वार (व्यूर्णुते) प्रकाशित करता है और (स्वाहुतः) वह सुपूजित होकर (नवीयसा) नूतन विज्ञान के साथ उपासक के ऊपर कृपा करता है । उसी की कृपा से (अन्यके+समे) अन्य सब ही शत्रु (नभन्ताम्) विनष्ट हो जाएँ ॥६ ॥

    भावार्थ - सर्व देवों का वह जनक है, सबकी दशा वह जानता है, सबका शासक है, इत्यादि दिखलाने से भाव यह है कि वही एक पूज्य है, अन्य नहीं ॥६ ॥

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