Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 61 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 61/ मन्त्र 18
    ऋषिः - भर्गः प्रागाथः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    प्र॒भ॒ङ्गी शूरो॑ म॒घवा॑ तु॒वीम॑घ॒: सम्मि॑श्लो वि॒र्या॑य॒ कम् । उ॒भा ते॑ बा॒हू वृष॑णा शतक्रतो॒ नि या वज्रं॑ मिमि॒क्षतु॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ऽभ॒ङ्गी । शूरः॑ । म॒घऽवा॑ । तु॒विऽम॑घः । सम्ऽमि॑श्लः । वी॒र्या॑य । कम् । उ॒भा । ते॒ । बा॒हू इति॑ । वृष॑णा । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । नि । या । वज्र॑म् । मि॒मि॒क्षतुः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रभङ्गी शूरो मघवा तुवीमघ: सम्मिश्लो विर्याय कम् । उभा ते बाहू वृषणा शतक्रतो नि या वज्रं मिमिक्षतु: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽभङ्गी । शूरः । मघऽवा । तुविऽमघः । सम्ऽमिश्लः । वीर्याय । कम् । उभा । ते । बाहू इति । वृषणा । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । नि । या । वज्रम् । मिमिक्षतुः ॥ ८.६१.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 61; मन्त्र » 18
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 39; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    हे मनुष्यों ! यह परमात्मा (प्रभङ्गी) दुष्टों को मर्दन करनेवाला (शूरः) अति पराक्रमी महावीर (मघवा) सर्वधनसम्पन्न (तुवीमघः) महाधनी (संमिश्लः) कर्मानुसार सुख और दुःखों से मिलानेवाला और (वीर्य्याय+कम्) पराक्रम के लिये सर्वथा समर्थ है । उसी को पूजो । (शतक्रतो) हे अनन्तकर्मन् महेश ! (ते) तेरे (उभा+बाहू) दोनों बाहू (वृषणा) सुकर्मियों को सुख पहुँचानेवाले और (या) जो बाहू पापियों के लिये (वज्रम्) न्यायदण्ड (नि+मिमिक्षतुः) धारण करते हैं, वैसे तुझको ही हम पूजते हैं ॥१८ ॥

    भावार्थ - ईश्वर के बाहू आदि का वर्णन आरोप से होता है । वह परम न्यायी और सर्वद्रष्टा है, अतः हे मनुष्यों ! पापों से डरो, नहीं तो उसका न्याय तुमको दण्ड देगा ॥१८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top