ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 69/ मन्त्र 2
न॒दं व॒ ओद॑तीनां न॒दं योयु॑वतीनाम् । पतिं॑ वो॒ अघ्न्या॑नां धेनू॒नामि॑षुध्यसि ॥
स्वर सहित पद पाठन॒दम् । वः॒ । ओद॑तीनाम् । न॒दम् । योयु॑वतीनाम् । पति॑म् । वः॒ । अघ्न्या॑नाम् । धे॒नू॒नाम् । इ॒षु॒ध्य॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नदं व ओदतीनां नदं योयुवतीनाम् । पतिं वो अघ्न्यानां धेनूनामिषुध्यसि ॥
स्वर रहित पद पाठनदम् । वः । ओदतीनाम् । नदम् । योयुवतीनाम् । पतिम् । वः । अघ्न्यानाम् । धेनूनाम् । इषुध्यसि ॥ ८.६९.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 69; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
विषय - N/A
पदार्थ -
हे मनुष्यों ! तुम उस ईश्वर को प्रसन्न करने के लिये इच्छा करो । जो देव (वः+ओदतीनाम्) तुम्हारी सम्पत्तियों का रक्षक है और (योयुवतीनाम्) परम सुन्दरी स्त्रियों का (नदम्) पालक है और जो (वः) तुम्हारी (अघ्न्यानाम्) अहन्तव्य (धेनूनाम्) दुग्धवती गौवों का (पतिम्) पति है, उस परमदेव की आज्ञा पर चलो ॥२ ॥
भावार्थ - इस ऋचा में ओदती, योयुवती और धेनु ये तीनों स्त्रीलिङ्ग शब्द हैं । इससे दिखलाते हैं कि जैसे स्त्रीजाति का रक्षक ईश्वर है, वैसे ही प्रत्येक वीर पुरुष को उचित है कि वे स्त्रियों पर कभी अत्याचार न करें ॥२ ॥
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