ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 70/ मन्त्र 4
अषा॑ळ्हमु॒ग्रं पृत॑नासु सास॒हिं यस्मि॑न्म॒हीरु॑रु॒ज्रय॑: । सं धे॒नवो॒ जाय॑माने अनोनवु॒र्द्याव॒: क्षामो॑ अनोनवुः ॥
स्वर सहित पद पाठअषा॑ळ्हम् । उ॒ग्रम् । पृत॑नासु । स॒स॒हिम् । यस्मि॑न् । म॒हीः । उ॒रु॒ऽज्रयः॑ । सम् । धे॒नवः॑ । जाय॑माने । अ॒नो॒न॒वुः॒ । द्यावः॑ । क्षामः॑ । अ॒नो॒न॒वुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अषाळ्हमुग्रं पृतनासु सासहिं यस्मिन्महीरुरुज्रय: । सं धेनवो जायमाने अनोनवुर्द्याव: क्षामो अनोनवुः ॥
स्वर रहित पद पाठअषाळ्हम् । उग्रम् । पृतनासु । ससहिम् । यस्मिन् । महीः । उरुऽज्रयः । सम् । धेनवः । जायमाने । अनोनवुः । द्यावः । क्षामः । अनोनवुः ॥ ८.७०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 70; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
विषय - N/A
पदार्थ -
उस परमात्मा की स्तुति करता हूँ, जो (असाळ्हम्) दुष्टों को कभी क्षमा नहीं करता । जिस कारण (उग्रम्) वह दण्डविधाता है और जगत् की उपद्रवकारी (पृतनासु) सेनाओं का (सासहिम्) शासक और विनाशक है । (यस्मिन्+जायमाने) जिसके सर्वत्र विद्यमान होने के कारण (उरुज्रयः) महा वेगवान् (महीः) बड़े (धेनवः) द्युलोक और पृथिव्यादिलोक (सम्+अनोनवुः) नियम से चल रहे हैं । धेनुशब्दार्थ स्वयं श्रुति करती है, (द्यावः+क्षामः) द्युलोक और पृथिव्यादिलोक ॥४ ॥
भावार्थ - हे मनुष्यों ! वह जगदीश महान्यायी और महोग्र है, जिसकी आज्ञा में यह सम्पूर्ण जगत् चल रहा है, उसकी कीर्ति का गान करो ॥४ ॥
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