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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उदी॑राथामृताय॒ते यु॒ञ्जाथा॑मश्विना॒ रथ॑म् । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ई॒रा॒था॒म् । ऋ॒त॒ऽय॒ते । यु॒ञ्जाथा॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । रथ॑म् । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदीराथामृतायते युञ्जाथामश्विना रथम् । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । ईराथाम् । ऋतऽयते । युञ्जाथाम् । अश्विना । रथम् । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अश्विना) हे शोभनाश्वयुक्त राजा और सचिव ! (ऋतायते) सत्याचारी और प्रकृतिनियमवेत्ता के लिये आप (उदीराथाम्) सदा जागृत हूजिये और (रथम्) रथ को (युञ्जाथाम्) जोड़िये । इस प्रकार (वाम्) आप दोनों का (अवः) रक्षण (अन्ति) हमारे समीप में (सत्+भूतु) विद्यमान होवे ॥१ ॥

    भावार्थ - राजा और अमात्यादिकों को इस प्रकार प्रबन्ध करना चाहिये कि प्रजाओं को अपने समीप में सम्पूर्ण रक्षा की सामग्री समझें ॥१ ॥

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