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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 73 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 73/ मन्त्र 18
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः देवता - अश्विनौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पुरं॒ न धृ॑ष्ण॒वा रु॑ज कृ॒ष्णया॑ बाधि॒तो वि॒शा । अन्ति॒ षद्भू॑तु वा॒मव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुर॑म् । न । धृ॒ष्णो॒ इति॑ । आ । रु॒ज॒ । कृ॒ष्णया॑ । बा॒धि॒तः । वि॒शा । अन्ति॑ । सत् । भू॒तु॒ । वा॒म् । अवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरं न धृष्णवा रुज कृष्णया बाधितो विशा । अन्ति षद्भूतु वामव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरम् । न । धृष्णो इति । आ । रुज । कृष्णया । बाधितः । विशा । अन्ति । सत् । भूतु । वाम् । अवः ॥ ८.७३.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 73; मन्त्र » 18
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 8

    पदार्थ -
    हे मनुष्यवर्ग ! केवल नृपों के ऊपर सर्व भार मत दो, किन्तु स्वयमपि उद्योग करो, इससे यह शिक्षा देते हैं । यथा (धृष्णो) धर्षक हे वीर मनुष्यसमुदाय ! तू जब-जब (कृष्णया) कृष्णवर्ण पापिष्ठ (विशा) प्रजा से (बाधितः) पीड़ित होओ, तब-तब (पुरम्+न) दुष्ट नगर के समान उस पापिष्ठ प्रजा को (आरुज) विनष्ट कर । अन्ति० ॥१८ ॥

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