ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
ऋषिः - कुरुसुतिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒रो॒ळाशं॑ नो॒ अन्ध॑स॒ इन्द्र॑ स॒हस्र॒मा भ॑र । श॒ता च॑ शूर॒ गोना॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒रो॒ळाश॑म् । नः॒ । अन्ध॑सः । इन्द्र॑ । स॒हस्र॑म् । आ । भ॒र॒ । श॒ता । च॒ । शू॒र॒ । गोना॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरोळाशं नो अन्धस इन्द्र सहस्रमा भर । शता च शूर गोनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठपुरोळाशम् । नः । अन्धसः । इन्द्र । सहस्रम् । आ । भर । शता । च । शूर । गोनाम् ॥ ८.७८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 31; मन्त्र » 1
विषय - पुनः ईश्वर की प्रार्थना करते हैं ।
पदार्थ -
(इन्द्र) हे सर्वद्रष्टा सर्वशक्ते हे महेन्द्र ! (नः) हम प्राणियों को (पुरोळाशम्) जो आगे में दिया जाय अर्थात् खाने पीने योग्य (अन्धसः) अन्न (सहस्रम्) सहस्रों प्रकारों का (आभर) दो (च) और (गोनाम्+शता) बहुविध गौ, महिष, अश्व, मेष और अज आदि पशु दीजिये ॥१ ॥
भावार्थ - ईश्वर सर्व पदार्थ का दाता है, अतः अपनी आवश्यक वस्तु उससे माँगनी चाहिये ॥१ ॥
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