Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 26/ मन्त्र 17
    ऋषिः - महीयव ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः
    3

    स न॒ऽइन्द्रा॑य॒ यज्य॑वे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्यः॑। व॒रि॒वो॒वित्परि॑ स्रव॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः। नः॒। इन्द्रा॑य। यज्य॑वे। वरु॑णाय। म॒रुद्भ्य॒ इति॑ म॒रुत्ऽभ्यः॑। व॒रि॒वो॒विदिति॑ वरिवः॒ऽवित्। परि॑। स्र॒व॒ ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नऽइन्द्राय यज्यवे वरुणाय मरुद्भ्यः । वरिवोवित्परि स्रव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः। नः। इन्द्राय। यज्यवे। वरुणाय। मरुद्भ्य इति मरुत्ऽभ्यः। वरिवोविदिति वरिवःऽवित्। परि। स्रव॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 26; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    Translation -
    O divine elixir, possessor of wealth as you are, may you flow from all sides for our resplendence, for our venerability and for our humanitarian character. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top