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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 28

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 28/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    कृ॒न्त द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे कृ॒न्त मे॑ पृतनाय॒तः। कृ॒न्त मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ कृ॒न्त मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कृ॒न्त। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। कृ॒न्त। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। कृ॒न्त। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दा॑न्‌। कृ॒न्त। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कृन्त दर्भ सपत्नान्मे कृन्त मे पृतनायतः। कृन्त मे सर्वान्दुर्हार्दो कृन्त मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कृन्त। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। कृन्त। मे। पृतनाऽयतः। कृन्त। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दान्‌। कृन्त। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 28; मन्त्र » 8

    Translation -
    Let the good Darbha hue my foe-men, let it hue those who bear malice with us, let it hue all those who have malignant heart for me and let it-hue my adversaries.

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