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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 29

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 29/ मन्त्र 8
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    दह॑ दर्भ स॒पत्ना॑न्मे॒ दह॑ मे पृतनाय॒तः। दह॑ मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॒ दह॑ मे द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दह॑। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। दह॑। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। दह॑। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। दह॑। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२९.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दह दर्भ सपत्नान्मे दह मे पृतनायतः। दह मे सर्वान्दुर्हार्दो दह मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दह। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। दह। मे। पृतनाऽयतः। दह। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। दह। मे। द्विषतः। मणे ॥२९.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 29; मन्त्र » 8

    Translation -
    Let this nice Dharbha consume my foe-men, let it consume them who bear malignancy for me, let it consume all those who bear evils for me in their hearts and let it consume those men who bear malice for me.

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