Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 33

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 33/ मन्त्र 4
    सूक्त - भृगुः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - दर्भ सूक्त

    ती॒क्ष्णो राजा॑ विषास॒ही र॑क्षो॒हा वि॒श्वच॑र्षणिः। ओजो॑ दे॒वानां॒ बल॑मु॒ग्रमे॒तत्तं ते॑ बध्नामि ज॒रसे॑ स्व॒स्तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ती॒क्ष्णः। राजा॑। वि॒ऽस॒स॒हिः। र॒क्षः॒ऽहा। वि॒श्वऽच॑र्षणिः। ओजः॑। दे॒वाना॑म्। बल॑म्। उ॒ग्रम्। ए॒तत्। तम्। ते॒। ब॒ध्ना॒मि॒। ज॒रसे॑। स्व॒स्तये॑ ॥३३.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तीक्ष्णो राजा विषासही रक्षोहा विश्वचर्षणिः। ओजो देवानां बलमुग्रमेतत्तं ते बध्नामि जरसे स्वस्तये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तीक्ष्णः। राजा। विऽससहिः। रक्षःऽहा। विश्वऽचर्षणिः। ओजः। देवानाम्। बलम्। उग्रम्। एतत्। तम्। ते। बध्नामि। जरसे। स्वस्तये ॥३३.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 33; मन्त्र » 4

    Translation -
    This Darbha mounts over the soil of earth with its vigour, this good one takes its place on the Vedi in the Yajna, the seers of the vedic meanings have this purifying grass and let it purify al] the diseases quelling them for from us.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top