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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 38

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 38/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - बृहस्पतिः, त्विषिः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - वर्चस्य सूक्त

    या ह॒स्तिनि॑ द्वी॒पिनि॒ या हिर॑ण्ये॒ त्विषि॑र॒प्सु गोषु॒ या पुरु॑षेषु। इन्द्रं॒ या दे॒वी सु॒भगा॑ ज॒जान॒ सा न॒ ऐतु॒ वर्च॑सा संविदा॒ना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या । ह॒स्तिनि॑ । द्वी॒पिनि॑ । या । हिर॑ण्ये । त्विषि॑: । अ॒प्ऽसु। गोषु॑ । या । पुरु॑षेषु । इन्द्र॑म् । या । दे॒वी । सु॒ऽभगा॑ । ज॒जान॑ । सा । न॒: । आ । ए॒तु॒ । वर्च॑सा । स॒म्ऽवि॒दा॒ना ॥३८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या हस्तिनि द्वीपिनि या हिरण्ये त्विषिरप्सु गोषु या पुरुषेषु। इन्द्रं या देवी सुभगा जजान सा न ऐतु वर्चसा संविदाना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या । हस्तिनि । द्वीपिनि । या । हिरण्ये । त्विषि: । अप्ऽसु। गोषु । या । पुरुषेषु । इन्द्रम् । या । देवी । सुऽभगा । जजान । सा । न: । आ । एतु । वर्चसा । सम्ऽविदाना ॥३८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 38; मन्त्र » 2

    Translation -
    Whatever glamour of energy hath the elephant or panther, whatever glamour of energy is possessed by gold, whatever is found in waters, whatever have the bovine males and females and whatever have the men, and the sun and the brilliant and mighty that glamour which gave birth to Indra, the electricity, come unto us accompanied with strength and vigor.

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