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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 53

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 53/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृगुः देवता - कालः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - काल सूक्त

    का॒लो अश्वो॑ वहति स॒प्तर॑श्मिः सहस्रा॒क्षो अ॒जरो॒ भूरि॑रेताः। तमा रो॑हन्ति क॒वयो॑ विप॒श्चित॒स्तस्य॑ च॒क्रा भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    का॒लः। अश्वः॑। व॒ह॒ति॒। स॒प्तऽर॑श्मिः। स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षः। अ॒जरः॑। भूरि॑ऽरेताः। तम्। आ। रो॒ह॒न्ति॒। क॒वयः॑। वि॒पः॒चितः॑। तस्य॑। च॒क्रा। भुव॑नानि। विश्वा॑ ॥५३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कालो अश्वो वहति सप्तरश्मिः सहस्राक्षो अजरो भूरिरेताः। तमा रोहन्ति कवयो विपश्चितस्तस्य चक्रा भुवनानि विश्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कालः। अश्वः। वहति। सप्तऽरश्मिः। सहस्रऽअक्षः। अजरः। भूरिऽरेताः। तम्। आ। रोहन्ति। कवयः। विपःचितः। तस्य। चक्रा। भुवनानि। विश्वा ॥५३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 53; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (सप्तरश्मिः) सात प्रकार की किरणों वाला (अश्वः) आदित्य जैसे (वहति) सौरमण्डल का वहन करता है, वैसे (सहस्राक्षः) हजारों का क्षय करनेवाला, (भूरिरेताः) प्रभूतोत्पादन शक्तिवाला, (अजरः) जरारहित, जीर्ण न होनेवाला, सदागतिक (कालः) काल संसार-रथ का (वहति) वहन कर रहा है। (कवयः) क्रान्तदर्शी, दूरदर्शी (विपश्चितः) मेधावी (तम्) उस पर (आ रोहन्ति) आरोहण करते हैं, उसे नियन्त्रित करते हैं। (तस्य) उस रथ के (चक्रा=चक्राणि) चक्र हैं, (विश्वा=विश्वानि, भुवनानि) सब भुवन, अर्थात् सत्तावाले तारागण नक्षत्र आदित्य चन्द्र ग्रह आदि।

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