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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 84

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 84/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-८४

    इन्द्रा या॑हि॒ तूतु॑जान॒ उप॒ ब्रह्मा॑णि हरिवः। सु॒ते द॑धिष्व न॒श्चनः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑ । आ । या॒हि॒ । तूतु॑जान: । उप॑ । ब्रह्मा॑णि । ह॒रि॒ऽव॒: ॥ सु॒ते । द॒धि॒ष्व॒ । न॒: । चन॑: ॥८४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रा याहि तूतुजान उप ब्रह्माणि हरिवः। सुते दधिष्व नश्चनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्र । आ । याहि । तूतुजान: । उप । ब्रह्माणि । हरिऽव: ॥ सुते । दधिष्व । न: । चन: ॥८४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 84; मन्त्र » 3

    भाषार्थ -
    (इन्द्र) हे परमेश्वर! आप (आ याहि) प्रकट हूजिए। (तूतुजानः) शीघ्रता कीजिए। (हरिवः) हे दुःख हरनेवाले! (ब्रह्माणि) ब्राह्मीस्तुतियों के (उप) समीप प्रकट हूजिए। और (नः) हमारी (सुते) सन्तानों में (चनः) आध्यात्मिक अन्न, अर्थात् श्रद्धा भक्ति उपासना आदि (दधिष्व) स्थापित कीजिए।

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