Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 30/ मन्त्र 1
दे॒वा इ॒मं मधु॑ना॒ संयु॑तं॒ यवं॒ सर॑स्वत्या॒मधि॑ म॒णाव॑चर्कृषुः। इन्द्र॑ आसी॒त्सीर॑पतिः श॒तक्र॑तुः की॒नाशा॑ आसन्म॒रुतः॑ सु॒दान॑वः ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वा:। इ॒मम् । मधु॑ना । सऽयु॑तम् । यव॑म् । सर॑स्वत्याम् । अधि॑ । म॒णौ। अ॒च॒र्कृ॒षु॒: । इन्द्र॑: । आ॒सी॒त् । सीर॑ऽपति: । श॒ऽक्र॑तु: । की॒नाशा॑: । आ॒स॒न् । म॒रुत॑: । सु॒ऽदान॑व: ॥३०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
देवा इमं मधुना संयुतं यवं सरस्वत्यामधि मणावचर्कृषुः। इन्द्र आसीत्सीरपतिः शतक्रतुः कीनाशा आसन्मरुतः सुदानवः ॥
स्वर रहित पद पाठदेवा:। इमम् । मधुना । सऽयुतम् । यवम् । सरस्वत्याम् । अधि । मणौ। अचर्कृषु: । इन्द्र: । आसीत् । सीरऽपति: । शऽक्रतु: । कीनाशा: । आसन् । मरुत: । सुऽदानव: ॥३०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 30; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(देवाः) प्राकृत दिव्य तत्वों ने (मघुना) माधुर्य अथवा मधुर-जल से (इमम्) इस (संयुतम्) मिश्रित (यवम् ) यवान्न को (मणौ) मणिरूप (सरस्वत्यामधि) सरस्वती में (अवचर्कृषुः) कृषि द्वारा प्राप्त किया। (शतक्रतुः) सैकड़ों कर्मों वाला (इन्द्रः) सूर्य (सीरपतिः) हल का पति अर्थात् हल जोतने वाला (आसीत्) था, (सुदानव:) उतम जल के दाता (मरुतः) मानसून वायुएं (कीनाशाः) किसान (आसन्) थे।
टिप्पणी -
[सरस्वत्यामधि=जलवाली नदी के समीप की भूमि में। सरस्वती सामान्य नदी है जिस में कि प्रभूत जल है, सरस्वती= ( जल) + वती। यह ऐतिहासिक सरस्वती नदी नहीं। खाने में यव मधुर रसवाला है। अतः वह मधु मिश्रित है, अथवा सरस्वती के मधुर जल से मिश्रित है, (मधु उदकनाम, निघं. १।१२)। सरस्वती के समीप की भूमि सु-उपजाऊ है, अकृष्टपच्या है, अतः इस में हल जोतने की आवश्यकता नहीं, प्राकृतिक तत्त्वों की शक्तियों द्वारा ही कृष्यन्न प्राप्त हो जाता है, अतः सूर्य को हल चलाने वाला कहा है। न इसमें कूपादि द्वारा जल सींचा जाता है। वर्षा द्वारा ही जल सींचा जाता है, अतः मानसून वायुएं ही कीनाश हैं, मानुष किसान कहीं हैं। केशाः =किशाना: = किसान। सरस्वती नदी यवादि रूपी धन प्राप्त कराती है अतः मणि१ रूपा है। मन्त्र का प्रतिपाद्य देवता "शमी" है, शान्तिप्रद उदकप्रदात्री सरस्वती है]। [१. मणि =money; अर्थात् धनरूपा]