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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 55/ मन्त्र 1
ये पन्था॑नो ब॒हवो॑ देव॒याना॑ अन्त॒रा द्यावा॑पृथि॒वी सं॒चर॑न्ति। तेषा॒मज्या॑निं यत॒मो वहा॑ति॒ तस्मै॑ मा देवाः॒ परि॑ धत्ते॒ह सर्वे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठये । पन्था॑न: । ब॒हव॑: । दे॒व॒ऽयाना॑: । अ॒न्त॒रा । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । स॒म्ऽचर॑न्ति । तेषा॑म् । अज्या॑निम् । य॒त॒म: । वहा॑ति । तस्मै॑ । मा॒ । दे॒वा॒: । परि॑ । ध॒त्त॒ । इ॒ह । सर्वे॑ ॥५५.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ये पन्थानो बहवो देवयाना अन्तरा द्यावापृथिवी संचरन्ति। तेषामज्यानिं यतमो वहाति तस्मै मा देवाः परि धत्तेह सर्वे ॥
स्वर रहित पद पाठये । पन्थान: । बहव: । देवऽयाना: । अन्तरा । द्यावापृथिवी इति । सम्ऽचरन्ति । तेषाम् । अज्यानिम् । यतम: । वहाति । तस्मै । मा । देवा: । परि । धत्त । इह । सर्वे ॥५५.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 55; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(बहवः) नाना, (देवयानाः) व्यापारियों के जाने-आने के (पन्थानः) मार्ग, (ये) जो (द्यावापृथिवी अन्तरा) द्युलोक और पृथिवी के मध्य में अर्थात् अन्तरिक्ष में (सं चरन्ति) सम्यक्तया चालू हैं, (तेषाम्) उनमे से (यतमः) जो मार्ग (अज्यानिम्) वयोहानि के अभाव को लक्ष्य करके (वहाति) ले चलता है, (तस्मै) उस मार्ग के लिये (देवाः) हे व्यापारियों ! (सर्वे) तुम सब (इह) इस राज्य में (मा) मुझे (परिधत्त) [मार्ग के] परिज्ञान द्वारा परिपुष्ट करो।
टिप्पणी -
[देवयानाः; देव हैं व्यापारी, यथा "दिवु क्रीडा विजिगीषा "व्यवहार" आदि (दिवादिः); व्यवहार है व्यापार; व्यापारियों के यान अर्थात् जाने आने के मार्ग हैं, पन्थान:, अर्थात् अन्तरिक्ष के मार्ग। नया व्यापारी, व्यापार के निमित्त, अन्तरिक्षीय सुरक्षित मार्गों के परिज्ञान की प्रार्थना करता है। इस सम्बन्ध में देखो (अथर्व० ३।१५।१-२), जिन में कि इन्द्र- वणिक्, व्यापार निमित्त, अन्तरिक्ष मार्ग से वस्तुक्रय करके धनार्जन चाहता है। अज्यानिम्= अ + ज्या, वयोहानौ (क्र्यादिः) जीवन रक्षा। वहाति =वह प्रापणे (भ्वादिः) लेट् लकार में "आट्"]।