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अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
सूक्त - जमदग्नि
देवता - सुपर्णः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - कामात्मा सूक्त
यथा॑ सुप॒र्णः प्र॒पत॑न्प॒क्षौ नि॒हन्ति॒ भूम्या॑म्। ए॒वा नि ह॑न्मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । सु॒ऽप॒र्ण: । प्र॒ऽपत॑न् । प॒क्षौ । नि॒ऽहन्ति॑ । भूम्या॑म् । ए॒व । नि । ह॒न्मि॒ । ते॒ । मन॑: । यथा॑ । माम् । का॒मिनी॑ । अस॑: । यथा॑ । मत् । न । अप॑ऽगा: । अस॑: ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा सुपर्णः प्रपतन्पक्षौ निहन्ति भूम्याम्। एवा नि हन्मि ते मनो यथा मां कामिन्यसो यथा मन्नापगा असः ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । सुऽपर्ण: । प्रऽपतन् । पक्षौ । निऽहन्ति । भूम्याम् । एव । नि । हन्मि । ते । मन: । यथा । माम् । कामिनी । अस: । यथा । मत् । न । अपऽगा: । अस: ॥८.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 8; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(यथा) जिस प्रकार (सुपर्णः) गरुड (प्रपतन्) प्रपात करता हुआ (भूम्याम् ) पृथिवी पर (पक्षौ) दोनों पंखों को (निहन्ति) गतिरहित कर देता है (एवा) इसी प्रकार [हे पत्नी] (ते) तेरे (मनः) मन को (निहन्मि) मैं गतिरहित कर देता हूं, (यथा) ताकि (माम्) मुझे (कामिनी ) चाहने वाली (असः) तू हो, (यथा) ताकि (मत्) मुझ से (अपगाः) अलग हो जाने वाली, छोड़ जाने वाली (न असः) तू न हो।
टिप्पणी -
[गरुड पक्षी अधिक वेगवाला और शक्तिशाली होता है। पृथिवी पर प्रपात करने पर वह निज पक्षों को गतिरहित कर देता है, इसी प्रकार पति रुष्ट पत्नी के मन को विचारशून्य करता है ताकि वह पति को छोड़ कर चले जाने की सोच भी न सके। यह पति का, रुष्ट पत्नी के साथ सद्-व्यवहार और प्रेम का परिणाम है]।