Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
स वे॑द पु॒त्रः पि॒तरं॒ स मा॒तरं॒ स सू॒नुर्भु॑व॒त्स भु॑व॒त्पुन॑र्मघः। स द्यामौ॑र्णोद॒न्तरि॑क्षं॒ स्वः स इ॒दं विश्व॑मभव॒त्स आभ॑वत् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । वे॒द॒ । पु॒त्र: । पि॒तर॑म् । स: । मा॒तर॑म् । स: । सू॒नु: । भु॒व॒त् । स: । भु॒व॒त् । पुन॑:ऽमघ: । स: । द्याम् । औ॒र्णो॒त् । अ॒न्तरि॑क्षम् । स्व᳡: । स: । इ॒दम् । विश्व॑म् । अ॒भ॒व॒त् । स: । आ । अ॒भ॒व॒त् ॥१.२॥
स्वर रहित मन्त्र
स वेद पुत्रः पितरं स मातरं स सूनुर्भुवत्स भुवत्पुनर्मघः। स द्यामौर्णोदन्तरिक्षं स्वः स इदं विश्वमभवत्स आभवत् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । वेद । पुत्र: । पितरम् । स: । मातरम् । स: । सूनु: । भुवत् । स: । भुवत् । पुन:ऽमघ: । स: । द्याम् । और्णोत् । अन्तरिक्षम् । स्व: । स: । इदम् । विश्वम् । अभवत् । स: । आ । अभवत् ॥१.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(सः पुत्रः) वह पुत्र परमेश्वर (पितरम्) द्यौः पिता को, (स: मातरम्) वह पृथिवी माता को (वेद) जानता है, (सः सूनुः) वह जगत् का प्रेरक (भुवत्) हुआ है, (सः) वह (पुनर्मघः) वार-वार ऐश्वर्यवान् (भुवत्) हुआ है। (सः) वह (द्याम्, अन्तरिक्षम् स्वः) द्युलोक को, अन्तरिक्ष और स्वर्लोक को (और्णोत) निज व्याप्ति द्वारा आच्छादित किये हुआ है। (सः) यह (इदम्, विश्वम) इस विश्व को (अभवत्) प्राप्त है, (सः) वह (आ अभवत्) सर्वत्र सत्तावान् हुआ है, विद्यमान है।
टिप्पणी -
[परमेश्वर, पिता और पृथिवी माता का पुत्र है, इन दोनों की विविध घटनाओं द्वारा परमेश्वर की सत्ता का परिज्ञान होता है, अतः परमेश्वर को द्यौः और पृथिवी का पुत्र कहा है। सूनुः का अर्थ पुत्र नहीं, क्योंकि पुत्र का कथन पूर्व हो चुका है, अतः सूनुः का अर्थ है प्रेरक, षू प्रेरणे (तुदादिः)। अभवत्= भू प्राप्तौ (चुरादिः) आ अभवत् = आ (सर्वत्र) + अभवत् (भू सत्तायाम् भ्वादिः)। पुनर्मघः= मघ का अर्थ है धन अर्थात् ऐश्वर्य। प्रलय काल में परमेश्वर जगतरूपी धन से रहित हो जाता है, और जगत् को पैदा कर वह पुनः मघवान् हो जाता है। यह अवस्था वार-वार के प्रलय और सृष्टि में होती रहती है। परमेश्वर को "मघवा" भी कहते हैं, मघवा= मघवाला, धन वाला]।