Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
इ॒दमु॒च्छ्रेयो॑ऽव॒सान॒मागां॑ शि॒वे मे॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॑भूताम्। अ॑सप॒त्नाः प्र॒दिशो॑ मे भवन्तु॒ न वै त्वा॑ द्विष्मो॒ अभ॑यं नो अस्तु ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम्। उ॒त्ऽश्रेयः॑। अ॒व॒ऽसान॑म्। आ। अ॒गा॒म्। शि॒वे इति॑। मे॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। अ॒भू॒ता॒म्। अ॒स॒प॒त्नाः। प्र॒ऽदिशः॑। मे॒। भ॒व॒न्तु॒। न। वै। त्वा॒। द्वि॒ष्मः॒। अभ॑यम्। नः॒। अ॒स्तु॒ ॥१४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इदमुच्छ्रेयोऽवसानमागां शिवे मे द्यावापृथिवी अभूताम्। असपत्नाः प्रदिशो मे भवन्तु न वै त्वा द्विष्मो अभयं नो अस्तु ॥
स्वर रहित पद पाठइदम्। उत्ऽश्रेयः। अवऽसानम्। आ। अगाम्। शिवे इति। मे। द्यावापृथिवी इति। अभूताम्। असपत्नाः। प्रऽदिशः। मे। भवन्तु। न। वै। त्वा। द्विष्मः। अभयम्। नः। अस्तु ॥१४.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
Translation -
O king, I have got a splendid place of shelter. May the heavens and the earth be peaceful to me. May all the main quarters be free, from enemies for me, We don’t have any feeling of enemity for you; hence we may be free from fear.