Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 1/ मन्त्र 32
सूक्त - प्रत्यङ्गिरसः
देवता - कृत्यादूषणम्
छन्दः - द्व्यनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदातिजगती
सूक्तम् - कृत्यादूषण सूक्त
यथा॒ सूर्यो॑ मु॒च्यते॒ तम॑स॒स्परि॒ रात्रिं॒ जहा॑त्यु॒षस॑श्च के॒तून्। ए॒वाहं सर्वं॑ दुर्भू॒तं कर्त्रं॑ कृत्या॒कृता॑ कृ॒तं ह॒स्तीव॒ रजो॑ दुरि॒तं ज॑हामि ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । सूर्य॑: । मु॒च्यते॑ । तम॑स: । परि॑ । रात्रि॑म् । जहा॑ति । उ॒षस॑: । च॒ । के॒तून् । ए॒व । अ॒हम् । सर्व॑म् । दु॒:ऽभू॒तम् । कर्त्र॑म् । कृ॒त्या॒ऽकृता॑ । कृ॒तम् । ह॒स्तीऽइव॑ । रज॑: । दु॒:ऽइ॒तम् । ज॒हा॒मि॒ ॥१.३२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा सूर्यो मुच्यते तमसस्परि रात्रिं जहात्युषसश्च केतून्। एवाहं सर्वं दुर्भूतं कर्त्रं कृत्याकृता कृतं हस्तीव रजो दुरितं जहामि ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । सूर्य: । मुच्यते । तमस: । परि । रात्रिम् । जहाति । उषस: । च । केतून् । एव । अहम् । सर्वम् । दु:ऽभूतम् । कर्त्रम् । कृत्याऽकृता । कृतम् । हस्तीऽइव । रज: । दु:ऽइतम् । जहामि ॥१.३२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 1; मन्त्र » 32
विषय - पाप को छोड़, सूर्य की भांति चमक
शब्दार्थ -
(यथा) जिस प्रकार (सूर्य:) सूर्य (तमसः परि मुच्यते) अन्धकार से मुक्त हो जाता है, वह (रात्रिम) रात्रि को (च) और (उषस: केतून् ) उषाकाल के ज्ञापक चिह्नों को भी क्रमश: (जहाति) छोड़ देता है और उदय को प्राप्त होकर चमक उठता है (एवा) इसी प्रकार (अहम्) मैं (सर्वं दुर्भूतम्) सारी बुराई को (कृत्याकृता) हिंसा करनेवाले के द्वारा (कृतं) की गई (कृत्रम्) हिंसा को (जहामि) छोड़ देता हूँ । किस प्रकार ? (इव) जैसे (हस्ती) हाथी (रज:) धूल को उडाकर फेंक देता है उसी प्रकार मैं (दुरितम्) दुराचार को, पाप को त्यागता हूँ ।
भावार्थ - इस मन्त्र में मनुष्यों के लिए आशावाद का सुन्दर संदेश है । वेद का यह सन्देश पतित-अवस्था में पड़े हुए मनुष्य को भी एक बार पुनः उठ खड़े होने का आह्वान है । मनुष्य स्खलनशील है। वह गिर सकता है, पतित हो सकता है, फिसल सकता है। परन्तु यदि मनुष्य में साहस और धैर्य हो तो वह उठकर खड़ा हो सकता है । वेद ने कैसी सुन्दर उपमाएँ दी हैं ! सूर्य अन्धकार में छिप जाता है, उसे ग्रहण भी लगता है, परन्तु समय पाकर वह रात्रि के अन्धकार को और उषा की पताकाओं को गिराकर पुन: उदित हो जाता है और चमक उठता है । जैसे एक हाथी अपनी सूंड से धूल को उड़ा देता है, इसी प्रकार मनुष्य को भी आशावाद का सहारा लेकर हिंसा करनेवालों के द्वारा की गई हिंसा को, पाप और बुराइयों को परे भगा देना चाहिए । पाप, हिंसा और बुराई में तथा मनुष्य में इतना अन्तर रहना चाहिए जितना अन्धकार और सूर्य में रहता है।
इस भाष्य को एडिट करें