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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 71

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 71/ मन्त्र 1
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गायत्री छन्दः - त्र्यवसाना पञ्चपदातिजगती सूक्तम् - वेदमाता सूक्त

    स्तु॒ता मया॑ वर॒दा वे॑दमा॒ता प्र चो॑दयन्तां पावमा॒नी द्वि॒जाना॑म्। आयुः॑ प्रा॒णं प्र॒जां प॒शुं की॒र्तिं द्रवि॑णं ब्रह्मवर्च॒सम्। मह्यं॑ द॒त्त्वा व्र॑जत ब्रह्मलो॒कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तु॒ता। मया॑। व॒र॒दा। वे॒द॒ऽमा॒ता। प्र। चो॒द॒य॒न्ता॒म्। पा॒व॒मा॒नी। द्वि॒जाना॑म्। आयुः॑। प्रा॒णम्। प्र॒ऽजाम्। प॒शुम्। की॒र्तिम्। द्रवि॑णम्। ब्र॒ह्म॒ऽव॒र्च॒सम्। मह्य॑म्। द॒त्त्वा। व्र॒ज॒त॒। ब्र॒ह्म॒ऽलो॒कम् ॥७१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्। आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तुता। मया। वरदा। वेदऽमाता। प्र। चोदयन्ताम्। पावमानी। द्विजानाम्। आयुः। प्राणम्। प्रऽजाम्। पशुम्। कीर्तिम्। द्रविणम्। ब्रह्मऽवर्चसम्। मह्यम्। दत्त्वा। व्रजत। ब्रह्मऽलोकम् ॥७१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 71; मन्त्र » 1

    शब्दार्थ -
    परमात्मा उपदेश देते हैं —हे मनुष्यो ! (वरदा) वरदान देनेवाली (वेदमाता) वेदमाता (मया स्तुता) मेरे द्वारा उपदेश कर दी गई । यह वेदवाणी (प्रचोदयन्ताम्, द्विजानाम्) चेष्टाशील द्विजों को, मनुष्यों को (पावमानी) पवित्र करनेवाली है । यह वेदमाता (आयु:) दीर्घायु (प्राणम्) जीवनशक्ति (प्रजाम् ) सुसन्तान (पशुम् ) पशुधन (कीर्तिम् ) यश ( द्रविणम्) धन-धान्य और ( ब्रह्मवर्चसम्) ब्रह्मतेज प्रदान करनेवाली है । वेद के स्वाध्याय से प्राप्त इन पदार्थों को ( मह्यम्, दत्त्वा ) मेरे अर्पण करके (ब्रह्मलोकम् ) मोक्ष को ( व्रजत) प्राप्त करो ।

    भावार्थ - प्रभु उपदेश देते हैं – हे मनुष्यो ! मैंने तुम्हारे कल्याण के लिए वेदमाता का उपदेश कर दिया है । यह वेदवाणी कर्मशील मनुष्यों को पवित्र करनेवाली है । जो वेद का अध्ययन कर तदनुसार आचरण करेगा उसका जीवन पवित्र, निर्दोष और निष्पाप तो बनेगा ही, साथ ही उसे - १. दीर्घायु की प्राप्ति होगी । २. जीवनशक्ति मिलेगी । ३. सुसन्तान की प्राप्ति होगी । ४. पशुओं की कमी नहीं रहेगी । ५. चहुँ दिशाओं में उसकी कीर्ति चन्द्रिका छिटकेगी । ६. धन-धान्य, ऐश्वर्य और वैभव की उसे न्यूनता नहीं रहेगी । ७. ब्रह्मतेज, ज्ञान-बल निरन्तर बढ़ता रहेगा । वेदाध्ययन द्वारा प्राप्त इन सभी वस्तुओं का अपने स्वार्थ के लिए भोग मत करो । इन सभी वस्तुओं को प्रभु-अर्पण कर दो, प्रजा-हित में लगा दो, मानव-कल्याण में लगा दो तो तुम्हें जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी ।

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