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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 37 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 7
वि॒श्वाहा॑ त्वा सु॒मन॑सः सु॒चक्ष॑सः प्र॒जाव॑न्तो अनमी॒वा अना॑गसः । उ॒द्यन्तं॑ त्वा मित्रमहो दि॒वेदि॑वे॒ ज्योग्जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒श्वाहा॑ । त्वा॒ । सु॒ऽमन॑सः । सु॒ऽचक्ष॑सः । प्र॒जाऽव॑न्तः । अ॒न॒मी॒वाः । अना॑गसः । उ॒त्ऽयन्त॑म् । त्वा॒ । मि॒त्र॒ऽम॒हः॒ । दि॒वेऽदि॑वे । ज्योक् । जी॒वाः । प्रति॑ । प॒श्ये॒म॒ । सू॒र्य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वाहा त्वा सुमनसः सुचक्षसः प्रजावन्तो अनमीवा अनागसः । उद्यन्तं त्वा मित्रमहो दिवेदिवे ज्योग्जीवाः प्रति पश्येम सूर्य ॥
स्वर रहित पद पाठविश्वाहा । त्वा । सुऽमनसः । सुऽचक्षसः । प्रजाऽवन्तः । अनमीवाः । अनागसः । उत्ऽयन्तम् । त्वा । मित्रऽमहः । दिवेऽदिवे । ज्योक् । जीवाः । प्रति । पश्येम । सूर्य ॥ १०.३७.७
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
विषय - उपासना से पूर्व तैयारी
शब्दार्थ -
(सूर्य) हे प्रकाशस्वरूप प्रभो ! (मित्र-महः) हे स्नेहीजनों से पूजनीय ! (जीवाः) हम जीवगण, तेरे उसासक (विश्वाहा) सदा (सुमनसः) उत्तम मनवाले (सुचक्षसः) निर्मल दृष्टिवाले (प्रजावन्तः) शक्तिशाली, वीर्यवान् होकर (अनमीवा:) रोगरहित रहकर (अनागस:) पाप-वासनाओं से पृथक् रहकर (दिवे दिवे) प्रतिदिन (उद्यन्तं त्वा) हृदय-मन्दिर में उदय होते हुए आपको (ज्योक्) निरन्तर (प्रतिपश्येम) देखा करें, आपके दर्शन किया करें ।
भावार्थ - किसी भी कार्य को करने से पूर्व तैयारी करनी पड़ती है। प्रभु-उपासना से पूर्व हमें अपने जीवन को कैसा बनाना चाहिए इस बात का मन्त्र में सुन्दरता से निर्देश किया गया है । १. चित्त की वृत्तियों को निरुद्ध करो, मन को शुद्ध, पवित्र और निर्मल बनाओ । २. निर्मल दृष्टिवाले बनो । ‘सुचक्षसः’ यहाँ सभी इन्द्रियों का उपलक्षण है। अपनी सभी इन्द्रियों को निर्मल बनाओ । ३. शरीर की उपेक्षा मत करो। शरीर को बलवान् और शक्तिशाली बनाओ । ४. अपना खान-पान, दिनचर्या इस प्रकार की रखो कि रोग आपके ऊपर आक्रमण न करें । ५. वासनाओं, ऐषणाओं और तृष्णाओं को दूर हटाकर मन, वचन और कर्म से शुद्ध-पवित्र बन जाओ । ६. ऐसा बनने पर हृदय में उदय होनेवाले परमात्मा के निरन्तर दर्शन होते रहते हैं ।
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