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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 52 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 52/ मन्त्र 9
उप॑ नः सू॒नवो॒ गिरः॑ शृ॒ण्वन्त्व॒मृत॑स्य॒ ये। सु॒मृ॒ळी॒का भ॑वन्तु नः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठउप॑ । नः॒ । सू॒नवः॑ । गिरः॑ । शृ॒ण्वन्तु॑ । अ॒मृत॑स्य । ये । सु॒ऽमृ॒ळी॒काः । भ॒व॒न्तु॒ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नः सूनवो गिरः शृण्वन्त्वमृतस्य ये। सुमृळीका भवन्तु नः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठउप। नः। सूनवः। गिरः। शृण्वन्तु। अमृतस्य। ये। सुऽमृळीकाः। भवन्तु। नः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 52; मन्त्र » 9
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
विषय - हमारे पुत्र वेद सुनें
शब्दार्थ -
(ये) जो (न:) हमारे ( सूनव:) पुत्र हैं वे (अमृतस्य) अमर, अखण्ड, अविनाशी प्रभु की ( गिरः) वेदवाणियों को (शृण्वन्तु) सुनें और उसे सुनकर (नः) हमारे लिए (सुमृळीका:) उत्तम सुखकारी (भवन्तु ) हों ।
भावार्थ - प्रत्येक घर में प्रतिदिन वेद-पाठ होना चाहिए । जब हमारे घरों में यज्ञ और हवन होंगे, स्वाहा और स्वधाकार की ध्वनि उठेगी, वेदों का उद्घोष होगा तभी हमारे पुत्र वेद-ज्ञान को सुन सकेंगे । वेद सभी ज्ञान और विज्ञान का मूल है और अखिल शिक्षाओं का भण्डार है । जब हमारे पुत्र वेद के इस प्रकार के मन्त्रों को सुनेंगे अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु सम्मनाः । (अथर्ववेद ३ ।३० । २) 'पुत्र पिता के अनुकूल चलनेवाला हो और माता के साथ समान मनवाला हो ।' तो ये शिक्षाएँ उनके जीवन में आएँगी। इन वैदिक शिक्षाओं पर आचरण करते हुए वे अपने माता-पिता के लिए, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए सुख, शान्ति, मङ्गल और कल्याण का कारण बनेंगे ।
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