साइडबार
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 16 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 16/ मन्त्र 5
त्वम॑ग्ने गृ॒हप॑ति॒स्त्वं होता॑ नो अध्व॒रे। त्वं पोता॑ विश्ववार॒ प्रचे॑ता॒ यक्षि॒ वेषि॑ च॒ वार्य॑म् ॥५॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । अ॒ग्ने॒ । गृ॒हऽप॑तिः । त्वम् । होता॑ । नः॒ । अ॒ध्व॒रे । त्वम् । पोता॑ । वि॒श्व॒ऽवा॒र॒ । प्रऽचे॑ताः । यक्षि॑ । वेषि॑ । च॒ । वार्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमग्ने गृहपतिस्त्वं होता नो अध्वरे। त्वं पोता विश्ववार प्रचेता यक्षि वेषि च वार्यम् ॥५॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। अग्ने। गृहऽपतिः। त्वम्। होता। नः। अध्वरे। त्वम्। पोता। विश्वऽवार। प्रऽचेताः। यक्षि। वेषि। च। वार्यम् ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 5
विषय - हमें कल्याण-पथ पर चलाइए
शब्दार्थ -
(अग्ने) हे परमेश्वर ! (त्वम्) तू (गृहपतिः) हमारे हृदय मन्दिर का स्वामी है (त्वम्) तू (न: अध्वरे) हमारे उपासना यज्ञ का (होता) ऋत्विक, याजक है। (विश्ववार) हे वरण करने योग्य परमेश्वर ! (त्वम् पोता) आप ही सबको पवित्र करनेवाले हैं (प्रचेता:) आपका ज्ञान महान है (यक्षि) आप हमारे जीवन यज्ञ में हमें कल्याण की ओर प्रेरित कीजिए क्योंकि आप सदाचार सम्पन्न (वार्यम्) वरणीय ज्ञानी भक्त को ही (यासि च) प्राप्त होते हो ।
भावार्थ - १. ईश्वर ही हमारे हृदय-मन्दिर का स्वामी है, अतः जो मान और सम्मान ईश्वर को देना चाहिए उसे हम मूर्ति आदि किसी जड़ पदार्थ को न दें । २. हमने उपासना-यज्ञ प्रारम्भ किया है, उस उपासना-यज्ञ का याजक, उसे सम्पन्न करानेवाला प्रभु ही है । उसकी प्राप्ति पर ही यह यज्ञ सम्पूर्ण होगा । ३. वह ईश्वर वरणीय है, सबको पवित्र करनेवाला है, महान् ज्ञानी है अतः भक्त प्रार्थना करता है- प्रभो ! आप सबको पवित्र करनेवाले हैं अत: मुझे भी कल्याणपथ पर प्रेरित कीजिए । जो सदाचार-सम्पन्न है, जिसने अपने जीवन को शुद्ध, पवित्र और निर्मल बना लिया है आप उसीका वरण करते हैं, उसीको दर्शन देते हैं, उसीको अपना कृपापात्र बनाते हैं। आप हमारे जीवन को सुपथ पर चलाइए, जिससे हम आपको प्राप्त कर सकें ।
इस भाष्य को एडिट करें