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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 48/ मन्त्र 14
त्राता॑रो देवा॒ अधि॑ वोचता नो॒ मा नो॑ नि॒द्रा ई॑शत॒ मोत जल्पि॑: । व॒यं सोम॑स्य वि॒श्वह॑ प्रि॒यास॑: सु॒वीरा॑सो वि॒दथ॒मा व॑देम ॥
स्वर सहित पद पाठत्राता॑रः । दे॒वाः॒ । अधि॑ । वो॒च॒त॒ । नः॒ । मा । नः॒ । नि॒ऽद्रा । ई॒श॒त॒ । मा । उ॒त । जल्पिः॑ । व॒यम् । सोम॑स्य । वि॒श्वह॑ । प्रि॒यासः॑ । सु॒ऽवीरा॑सः । वि॒दथ॑म् । आ । व॒दे॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रातारो देवा अधि वोचता नो मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पि: । वयं सोमस्य विश्वह प्रियास: सुवीरासो विदथमा वदेम ॥
स्वर रहित पद पाठत्रातारः । देवाः । अधि । वोचत । नः । मा । नः । निऽद्रा । ईशत । मा । उत । जल्पिः । वयम् । सोमस्य । विश्वह । प्रियासः । सुऽवीरासः । विदथम् । आ । वदेम ॥ ८.४८.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 48; मन्त्र » 14
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 13; मन्त्र » 4
विषय - हम आलसी और बकवासी न बनें
शब्दार्थ -
(त्रातार: देवा) हे रक्षा करनेवाले विद्वानो ! (नः अधिवोचत) हमें अधिकारपूर्वक उपदेश दो जिससे (न:) हमारे ऊपर (निद्रा) आलस्य (मा ईशत) शासन न करे (उत) और (मा जल्पि:) बकवास, गपशप भी हमारे ऊपर अधिकार न जमाए । (विश्वह) हे सकल दुर्गुणों के नाशक ! (वयं) हम लोग (सोमस्य प्रियास:) शान्तिदायक, सोमस्वरूप आपके प्यारे बनें (सुवीरासः) उत्तम वीर अथवा उत्तम सन्तानवाले होकर (विदथम्) ज्ञान का (आवदेम) सर्वत्र प्रचार किया करें ।
भावार्थ - मन्त्र में निम्न शिक्षाएँ हैं - संसार का कल्याण चाहनेवाले, संसार की रक्षा के लिए कटिबद्ध ज्ञानी और विद्वान् लोगों को अधिकारपूर्वक उपदेश करना चाहिए । उस उपदेश के फलस्वरूप मनुष्यों के दुर्गुण दूर होंगे और उनमें शुभ गुणों का विकास होगा। विद्वानों के उपदेश से लोगों का आलस्य और प्रमाद दूर होगा। वे कर्मशील, उद्योगी और कर्मठ बनेंगे। उनका हर समय बकवास करते रहने का, गप्पबाज़ी का स्वभाव समाप्त हो जाएगा । आलस्य और निद्रा में जो समय नष्ट होता था, वह ईश्वर-भक्ति में लगेगा । लोग ईश्वर के उपासक बनेंगे, उसका गुणगान करेंगे । वे स्वयं उत्तम वीर बनेंगे, उनकी सन्तान भी श्रेष्ठ बनेगी और ज्ञानी बनकर वे भी सर्वत्र ज्ञान का प्रसार और प्रचार करेंगे ।
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