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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 48 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 48/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रगाथः काण्वः देवता - सोमः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अपा॑म॒ सोम॑म॒मृता॑ अभू॒माग॑न्म॒ ज्योति॒रवि॑दाम दे॒वान् । किं नू॒नम॒स्मान्कृ॑णव॒दरा॑ति॒: किमु॑ धू॒र्तिर॑मृत॒ मर्त्य॑स्य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अपा॑म । सोम॑म् । अ॒मृताः॑ । अ॒भू॒म॒ । अग॑न्म । ज्योतिः॑ । अवि॑दाम । दे॒वान् । किम् । नू॒नम् । अ॒स्मान् । कृ॒ण॒व॒त् । अरा॑ति । किम् । ऊँ॒ इति॑ । धू॒र्तिः । अ॒मृ॒त॒ । मर्त्य॑स्य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपाम सोमममृता अभूमागन्म ज्योतिरविदाम देवान् । किं नूनमस्मान्कृणवदराति: किमु धूर्तिरमृत मर्त्यस्य ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपाम । सोमम् । अमृताः । अभूम । अगन्म । ज्योतिः । अविदाम । देवान् । किम् । नूनम् । अस्मान् । कृणवत् । अराति । किम् । ऊँ इति । धूर्तिः । अमृत । मर्त्यस्य ॥ ८.४८.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 48; मन्त्र » 3
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 3

    शब्दार्थ -
    (अमृत) हे अखण्ड ,एकरस, अमृत स्वरूप परमात्मन् ! हमने तेरे (सोमम्) ज्ञानमय भक्तिरस का (अपाम) पान कर लिया है । सोम-पान करके हम भी (अमृताः) अमृत, दीर्घायु, बलशाली (अभूम) हो गए हैं । सोमपान करके हमने (देवान्) दिव्य गुणों को, दिव्यताओं को (अविदाम) प्राप्त कर लिया है (ज्योतिः) ज्योति, प्रकाश (अगन्म) प्राप्त कर लिया है (नूनम्) अब (अराति:) शत्रु (अस्मान्) हमारे प्रति (किं कृण्वत्) क्या कर सकता है, (उ किम्) और क्या (मर्त्यस्य धूर्तिः) धूर्त मनुष्य की धूर्तता कर सकती है ?

    भावार्थ - अग्नि के समीप बैठने से शरीरों में गर्मी आती है वैसे ही जैसे परमेश्वर के समीप बैठने से जीवन में प्रभु के गुण आते हैं। जो उपासक प्रभु के समीप बैठता है, उसके भक्तिरस का पान करता है उसे क्या मिलता है, उसी का सुन्दर चित्रण इस मन्त्र में है - १. सोम-पान करके, प्रभु के आनन्दरस का पान करके मनुष्य बलवान् और शक्तिशाली बन जाता है । २. सोम-पान करने से मनुष्य में दिव्य गुण आ जाते हैं, बुरी वृत्तियाँ, अवगुण और दोष परे भाग जाते हैं । ३. सोम-पान करने से प्रकाश की प्राप्ति होती है, ईश्वर का साक्षात्कार हो जाता है । ४. सोम-पान करनेवाले का आन्तरिक और बाह्य- शत्रु कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते । ४. धूर्त मनुष्य की धूर्तता भी ऐसे व्यक्ति के समक्ष व्यर्थ हो जाती है ।

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