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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 5
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रं॒ वर्ध॑न्तो अ॒प्तुर॑: कृ॒ण्वन्तो॒ विश्व॒मार्य॑म् । अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा॑व्णः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । वर्ध॑न्तः । अ॒प्ऽतुरः॑ । कृ॒ण्वन्तः॑ । विश्व॑म् । आर्य॑म् । अ॒प॒ऽघ्नन्तः॑ । अरा॑व्णः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । अपघ्नन्तो अराव्णः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । वर्धन्तः । अप्ऽतुरः । कृण्वन्तः । विश्वम् । आर्यम् । अपऽघ्नन्तः । अराव्णः ॥ ९.६३.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 5

    शब्दार्थ -
    (इन्द्रम्) आत्मा को (वर्धन्त:) बढ़ाते हुए, दिव्य गुणों से अलंकृत करते हुए (अप्तुरः) तत्परता के साथ कार्य करते हुए (अराव्ण:) अदानशीलता को, ईर्ष्या, द्वेष, द्रोह की भावनाओं को, शत्रुओं को (अपघ्नन्तः) परे हटाते हुए (विश्वम्) सम्पूर्ण विश्व को, समस्त संसार को (आर्यम्) आर्य (कृण्वन्तः) बनाते हुए हम सर्वत्र विचरें ।

    भावार्थ - वेद समस्त संसार को आर्य = श्रेष्ठ बनाने का उपदेश देता है । संसार को आर्य बनाने के लिए हमें क्या करना होगा, वेद ने उसका भी निर्देश कर दिया है । १. दूसरों को आर्य बनाने से पूर्व अपनी आत्मा को अलंकृत करना होगा । हमें स्वयं आर्य बनना होगा क्योंकि If one mends oneself we will have a new world. यदि प्रत्येक व्यक्ति अपना सुधार कर लेता है, प्रत्येक व्यक्ति अपने-आपको आर्य बना लेता है तो सारा संसार स्वयमेव आर्य बन जाएगा । २. संसार को आर्य बनाने के लिए हमें तत्परता से कार्य करना होगा । हमें कर्मशील, पुरुषार्थी और उद्योगी बनना होगा। केवल कहने से, जयघोष लगाने से और बातें बनाने से हम संसार को आर्य नहीं बना सकते । ३. संसार को आर्य बनाने के लिए हमें ईर्ष्या, द्वेष, अदानशीलता आदि की भावनाओं को तथा शत्रुओं = नियम और व्यवस्था को भंग करनेवालों को मार भगाना होगा ।

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