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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 67 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 32
    ऋषिः - पवित्रो वसिष्ठो वोभौः वा देवता - पवमान्यध्येतृस्तुतिः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    पा॒व॒मा॒नीर्यो अ॒ध्येत्यृषि॑भि॒: सम्भृ॑तं॒ रस॑म् । तस्मै॒ सर॑स्वती दुहे क्षी॒रं स॒र्पिर्मधू॑द॒कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पा॒व॒मा॒नीः । यः । अ॒धि॒ऽएति॑ । ऋषि॑ऽभिः॒ । सम्ऽभृ॑तम् । रस॑म् । तस्मै॑ । सर॑स्वती । दु॒हे॒ । क्षी॒रम् । स॒र्पिः । मधु॑ । उ॒द॒कम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पावमानीर्यो अध्येत्यृषिभि: सम्भृतं रसम् । तस्मै सरस्वती दुहे क्षीरं सर्पिर्मधूदकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पावमानीः । यः । अधिऽएति । ऋषिऽभिः । सम्ऽभृतम् । रसम् । तस्मै । सरस्वती । दुहे । क्षीरम् । सर्पिः । मधु । उदकम् ॥ ९.६७.३२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 32
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 7

    शब्दार्थ -
    (य: ) जो व्यक्ति, उपासक (ऋषिभिः) ऋषियों द्वारा (सम्, भृतम्) धारण की गई (पावमानी:) अन्तकरण को पवित्र करनेवाली (रसम्) वेद की ज्ञानमयी ऋचाओं का (अध्येति) अध्ययन करता है (सरस्वती) वेदवाणी (तस्मै ) उस मनुष्य के लिए (क्षीरम्) दूध, (सर्पि:) घी (मधु उदकम् ) मधुर जल, शरबत आदि (दुहे) प्रदान करती है ।

    भावार्थ - वेदाध्ययन से क्या मिलता है ? मन्त्र में वेदाध्ययन से मिलनेवाले फलों का सुन्दर वर्णन है । वेद के अध्ययन और उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य के जीवन-निर्वाह के लिए सभी उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति होती है । जो व्यक्ति वेद का स्वाध्याय करते हैं उन्हें दूध और घी आदि शरीर के पोषक तत्त्वों की कमी नहीं रहती । वैदिक विद्वान् जहाँ जाते हैं वहीं घी, दुग्ध और शर्बत आदि से उनका स्वागत और सत्कार होता है। जीवन की आवश्यकताओं की प्राप्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को वेद का अध्ययन करना चाहिए ।

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