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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 75 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 75/ मन्त्र 2
ऋ॒तस्य॑ जि॒ह्वा प॑वते॒ मधु॑ प्रि॒यं व॒क्ता पति॑र्धि॒यो अ॒स्या अदा॑भ्यः । दधा॑ति पु॒त्रः पि॒त्रोर॑पी॒च्यं१॒॑ नाम॑ तृ॒तीय॒मधि॑ रोच॒ने दि॒वः ॥
स्वर सहित पद पाठऋतस्य॑ । जि॒ह्वा । प॒व॒ते॒ । मधु॑ । प्रि॒यम् । व॒क्ता । पतिः॑ । धि॒यः । अ॒स्याः । अदा॑भ्यः । दधा॑ति । पु॒त्रः । पि॒त्रोः । अ॒पी॒च्य॑म् । नाम॑ । तृ॒तीय॑म् । अधि॑ । रो॒च॒ने । दि॒वः ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियं वक्ता पतिर्धियो अस्या अदाभ्यः । दधाति पुत्रः पित्रोरपीच्यं१ नाम तृतीयमधि रोचने दिवः ॥
स्वर रहित पद पाठऋतस्य । जिह्वा । पवते । मधु । प्रियम् । वक्ता । पतिः । धियः । अस्याः । अदाभ्यः । दधाति । पुत्रः । पित्रोः । अपीच्यम् । नाम । तृतीयम् । अधि । रोचने । दिवः ॥ ९.७५.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 75; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
विषय - सत्य-महिमा
शब्दार्थ -
(ऋतस्य) सत्यवादी, योगाभ्यासी की (जिह्वा) वाणी (प्रियम् ) हृदय को तृप्त करनेवाले (मधु) आनन्ददायक रस को (पवते) बहाती है (अस्याः धियः) इस सत्य भाषण का (पति) पालक और (वक्ता) सत्य ही बोलनेवाला (अदाभ्य:) दुर्दमनीय होता है, वह किसी से दबाया नहीं जा सकता (पुत्रः) सत्यवादी पुत्र (पित्रो:) माता-पिता की (अपीच्यम्) अप्रसिद्ध अज्ञात (नाम) कीर्ति और यश को (दधाति) प्रकाशित कर देता है, फैला देता है । सत्यवादी पुत्र (तृतीयाम्) तीसरे, परमोत्कृष्ट (दिवः) द्युलोक में भी (अधिरोचनम्) अपने माता-पिता के नाम को रोशन करता है ।
भावार्थ - १. सत्यवादी सदा हृदय को तृप्त करनेवाली मीठी और मधुर वाणी बोलता है। उसके जीवन का आदर्श होता है ‘सत्य, प्रिय और हितकर’ बोलना । वह कभी कटु और तीखा नहीं बोलता । २. पापी और दुराचारी सत्यभाषी को कष्ट देकर भी उसके सत्यभाषणरूप कर्म से पृथक् नहीं कर सकते। आपत्तियाँ और संकट आने पर भी सत्यवादी सत्य ही बोलता है । ३. सत्यवादी पुत्र सत्यभाषण के प्रताप से अपने माता-पिता के अज्ञात नाम को, उनके यश और कीर्ति को चमका देता है । ४. साधारण लोगों की तो बात ही क्या, वह उच्चकोटि के विद्वानों में भी अपने माता-पिता के नाम को फैला देता है ।
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