Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 75 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 75/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    ऋ॒तस्य॑ जि॒ह्वा प॑वते॒ मधु॑ प्रि॒यं व॒क्ता पति॑र्धि॒यो अ॒स्या अदा॑भ्यः । दधा॑ति पु॒त्रः पि॒त्रोर॑पी॒च्यं१॒॑ नाम॑ तृ॒तीय॒मधि॑ रोच॒ने दि॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋतस्य॑ । जि॒ह्वा । प॒व॒ते॒ । मधु॑ । प्रि॒यम् । व॒क्ता । पतिः॑ । धि॒यः । अ॒स्याः । अदा॑भ्यः । दधा॑ति । पु॒त्रः । पि॒त्रोः । अ॒पी॒च्य॑म् । नाम॑ । तृ॒तीय॑म् । अधि॑ । रो॒च॒ने । दि॒वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतस्य जिह्वा पवते मधु प्रियं वक्ता पतिर्धियो अस्या अदाभ्यः । दधाति पुत्रः पित्रोरपीच्यं१ नाम तृतीयमधि रोचने दिवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतस्य । जिह्वा । पवते । मधु । प्रियम् । वक्ता । पतिः । धियः । अस्याः । अदाभ्यः । दधाति । पुत्रः । पित्रोः । अपीच्यम् । नाम । तृतीयम् । अधि । रोचने । दिवः ॥ ९.७५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 75; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (दिवः) द्युलोकस्य (रोचने) प्रकाशनाय (तृतीयं नाम) तृतीयं नामधेयम्। (अधिदधाति) धरति। तथा (पुत्रः पित्रोः) सन्तानभावस्य सन्तानीभावस्य च (अपीच्यम्) अधिकरणरूपोऽस्ति। अथ च (ऋतस्य जिह्वा) सत्यस्य जिह्वासि त्वम्। तथा (पवते) सर्वान् पवित्रयति। (मधु) मधुरस्य (प्रियम्) प्रियवचनस्य (वक्ता) कथनकर्तास्ति। तथा (अदाभ्यः) अदम्भनीयः स परमेश्वरः (अस्या धियः) अमीषां कर्मणामधिपतिरस्ति ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (2)

    पदार्थ

    (दिवः) द्युलोक के (रोचने) प्रकाश के लिये (तृतीयं) तीसरा (नाम) नाम (अधिदधाति) धारण करता है तथा (पुत्रः पित्रोः)  सन्तान-सन्तानी भाव का (अपीच्यम्) अधिकरण है और (ऋतस्य जिह्वा) सच्चाई की जिह्वा है तथा (पवते) सबको पवित्र करता है। (मधु) मधुर (प्रियम्) प्रिय वचनों का (वक्ता) कथन करनेवाला है और (अदाभ्यः) अदम्भनीय वह परमात्मा (अस्या धियः) इन कर्मों का अधिपति है ॥२॥

    भावार्थ

    जीव के शुभाशुभ सब कर्मों का अधिपति परमात्मा है। उसी प्रकाशस्वरूप परमात्मा से सब द्युभ्वादि लोक-लोकान्तरों का प्रकाश होता है ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सत्य-महिमा

    शब्दार्थ

    (ऋतस्य) सत्यवादी, योगाभ्यासी की (जिह्वा) वाणी (प्रियम् ) हृदय को तृप्त करनेवाले (मधु) आनन्ददायक रस को (पवते) बहाती है (अस्याः धियः) इस सत्य भाषण का (पति) पालक और (वक्ता) सत्य ही बोलनेवाला (अदाभ्य:) दुर्दमनीय होता है, वह किसी से दबाया नहीं जा सकता (पुत्रः) सत्यवादी पुत्र (पित्रो:) माता-पिता की (अपीच्यम्) अप्रसिद्ध अज्ञात (नाम) कीर्ति और यश को (दधाति) प्रकाशित कर देता है, फैला देता है । सत्यवादी पुत्र (तृतीयाम्) तीसरे, परमोत्कृष्ट (दिवः) द्युलोक में भी (अधिरोचनम्) अपने माता-पिता के नाम को रोशन करता है ।

    भावार्थ

    १. सत्यवादी सदा हृदय को तृप्त करनेवाली मीठी और मधुर वाणी बोलता है। उसके जीवन का आदर्श होता है ‘सत्य, प्रिय और हितकर’ बोलना । वह कभी कटु और तीखा नहीं बोलता । २. पापी और दुराचारी सत्यभाषी को कष्ट देकर भी उसके सत्यभाषणरूप कर्म से पृथक् नहीं कर सकते। आपत्तियाँ और संकट आने पर भी सत्यवादी सत्य ही बोलता है । ३. सत्यवादी पुत्र सत्यभाषण के प्रताप से अपने माता-पिता के अज्ञात नाम को, उनके यश और कीर्ति को चमका देता है । ४. साधारण लोगों की तो बात ही क्या, वह उच्चकोटि के विद्वानों में भी अपने माता-पिता के नाम को फैला देता है ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The flame of yajna as the voice of eternal truth rises and expresses the dear delicious beauty and glory of Soma, spirit of universal light and bliss. The speaker and protector of the acts of yajna and Soma truth of life is fearless, undaunted. Just as progeny is the continuance and illumination of the honour and reverence of parents, so is yajna the progeny and illuminative soma of Soma refulgent in the third and highest region of the light of existence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जीवाच्या शुभाशुभ सर्व कर्माचा अधिपती परमात्मा आहे त्याच प्रकाशस्वरूप परमात्म्याकडून सर्व द्यु भुवन इत्यादी लोक-लोकांतरामध्ये प्रकाश होतो. ॥२॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top