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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 25/ मन्त्र 6
तदित्स॑मा॒नमा॑शाते॒ वेन॑न्ता॒ न प्र यु॑च्छतः। धृ॒तव्र॑ताय दा॒शुषे॑॥
स्वर सहित पद पाठतत् । इत् । स॒मा॒नम् । आ॒शा॒ते॒ इति॑ । वेन॑न्ता । न । प्र । यु॒च्छ॒तः॒ । धृ॒तऽव्र॑ताय । दा॒शुषे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तदित्समानमाशाते वेनन्ता न प्र युच्छतः। धृतव्रताय दाशुषे॥
स्वर रहित पद पाठतत्। इत्। समानम्। आशाते इति। वेनन्ता। न। प्र। युच्छतः। धृतऽव्रताय। दाशुषे॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 25; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1083
ओ३म् तदित्स॑मा॒नमा॑शाते॒ वेन॑न्ता॒ न प्र यु॑च्छतः ।
धृ॒तव्र॑ताय दा॒शुषे॑ ॥
ऋग्वेद 1/25/6
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो,
तुम सुखदायक मङ्गलदायक,
हम सब को अपना बना लो,
सुख मिलते नहीं चाहकर भी हमें
दाता दोष हमारे दिखा दो
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो
जानते हैं तुम धृतव्रत हो,
व्रत नियमों को धारण करते,
हम भी यदि चलते हैं नियम से,
फिर भी कष्ट से क्यों डरते?
बनें पात्र हम तेरे सच्चे,
क्यों कर नहीं मिलते, हो हमसे,
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो
नर नारी वरुण प्रभु के प्रति,
भूले से भी यदि ना करें प्रमाद,
अप्रमत्त हो के पाले नियम तो,
निज आत्मा में होगा प्रकाश
अखण्डित सुख हम प्राप्त करें
यही है जीवन की सच्ची विसात
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो
नियम से हम पुरुषार्थ करें,
तो होगी पूरी आशाएँ,
शाश्वत सुख के भागी बन,
होगी आनन्दित आत्माएँ
त्यागो प्रमाद पालो नियम
करो दूर पीड़ायें बाधायें
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो
तुम सुखदायक मङ्गलदायक,
हम सब को अपना बना लो,
सुख मिलते नहीं चाहकर भी हमें
दाता दोष हमारे दिखा दो
दास हैं हम तुम दाश्वान हो,
हम सब का जीवन सम्भालो
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- 9 .12.12 11:30 प्रातः
*राग :- *
शीर्षक :- उसके प्रति प्रमाद मत करो
*तर्ज :- *
0103-703
धृतवृत = संसार के सब नियम और कार्यों को धारण करना
दाश्वान = सब कुछ देने वाला (वरुण प्रभु)
वेनन्ता = नाना कामनाओं वाले लोग
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
उसके प्रति प्रमाद मत करो
भगवान दाश्वान! हैं। हमें सब प्रकार के सुख और मङ्गल देने वाले हैं। वे तो हमें सर्वदा ही सुख देने के लिए उद्यत है। इस पर भी जो हमें सुख नहीं मिलते इसमें दोष हमारा ही है। भगवान धृतव्रत हैं। उन्होंने इस संसार में भान्ति भान्ति के व्रतों अर्थात् नियमों को धारण कर रखा है।
उन्होंने विश्व में अनेक प्रकार के नियमों को चला रखा है। ये नियम उन्होंने इसलिए चलाए हैं, कि यदि हम उन पर चलते रहें तो हम सदा सुखी रहेंगे। हम धृतव्रत प्रभु के इन नियमों को तोड़ते हैं, इसलिए हमें दु:खी होना पड़ता है।सुख से वंचित रहना पड़ता है। यदि हम नर-नारी वरुण प्रभु के प्रति प्रमाद ना करें और अप्रमत्त तो होकर सदा उसके नियमों का पालन करते रहें, तो हमें सदा निरन्तर समान रूप से सुख ही सुख प्राप्त होता रहेगा। उसका अखंडित रूप में सुख प्राप्त करने का एक उपाय है,कि हम अप्रमादी होकर प्रभु के व्रतों का पालन करते रहें। इसके बिना सुख मङ्गल प्राप्ति का और कोई उपाय नहीं है। यहां स्त्री और पुरुष के लिए "वेनन्ता" पद का प्रयोग हुआ है। द्विवचन के बल पर इसका अर्थ स्त्री और पुरुष किया गया है "वेनन्ता" शब्द का अर्थ होता है कामनाओं वाला । यहां नर नारी को "वेनन्ता" कामनाओं वाले कहने का भाव यह है कि हम नर नारियों में कितनी भी कामनाएं क्यों ना हो हमारी शुभकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी और उनकी पूर्ति से हमें सदा सुख मिलता रहेगा। यदि हम और प्रमादी होकर भगवान् के व्रतों का पालन करेंगे ।
शाश्वत सुख के अभिलाषी हे मेरे आत्मा! प्रमाद छोड़कर प्रभु के नियमों के पालन में लग जा फिर तेरे सुखों का कभी विघात ना होगा।
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