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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 45/ मन्त्र 2
बृ॒हन्निदि॒ध्म ए॑षां॒ भूरि॑ श॒स्तं पृ॒थुः स्वरु॑: । येषा॒मिन्द्रो॒ युवा॒ सखा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृ॒हन् । इत् । इ॒ध्मः । ए॒षा॒म् । भूरि॑ । श॒स्तम् । पृ॒थु । स्वरुः॑ । येषा॑म् । इन्द्रः॑ । युवा॑ । सखा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहन्निदिध्म एषां भूरि शस्तं पृथुः स्वरु: । येषामिन्द्रो युवा सखा ॥
स्वर रहित पद पाठबृहन् । इत् । इध्मः । एषाम् । भूरि । शस्तम् । पृथु । स्वरुः । येषाम् । इन्द्रः । युवा । सखा ॥ ८.४५.२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 45; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 42; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 42; मन्त्र » 2
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1080
ओ३म् बृ॒हन्निदि॒ध्म ए॑षां॒ भूरि॑ श॒स्तं पृ॒थुः स्वरु॑: ।
येषा॒मिन्द्रो॒ युवा॒ सखा॑ ॥
ऋग्वेद 8/45/2
सामवेद 1339
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा,
उनकी दिव्य तरुण प्रज्ञा से,
खिलती है प्रभा
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
अग्निमय सन्दीपन ही है,
सफल बृहद् यज्ञ,
तन्मय मन लेवें आनन्द,
स्तुति पाठ का
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
इन्द्र सखा ही करते हैं,
बृहद ज्ञान-यज्ञ,
इध्मरूप आत्मा को देते हैं प्रगटा,
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
महायज्ञ से जो होवे
अतिप्रकाशमान,
स्तुति रूप वाणी में
आ जाती मधुरता
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
मानसिक वाणी का कथन ही,
सही स्तुति पाठ,
मधुर बोल इन्द्र का शंसन,
करते हैं सदा
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
जिसके यज्ञ स्तंभ में
स्थित है आदित्य
दुर्भाग्य शत्रु-दलों को
देता है दबा
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
इन्द्र के सखा आ जाओ
संकल्प जगाओ,
बढ़े सत्व-बल से ही,
ये आत्म-सम्पदा
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा,
उनकी दिव्य तरुण प्रज्ञा से,
खिलती है प्रभा
सदाशक्त इन्द्र जिनका,
होता है सखा
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :- ८.२.२००२ १.४० pm
राग :- गौड़ सारंग
गौड़ सारंग का गायन समय दोपहर, ताल कहरवा ८ मात्रा
शीर्षक :- मनुष्य महान है
*तर्ज :- *
701-0102
तरुण = नया, नवीन
प्रज्ञा = बुद्धि, समझ
प्रभा = दीप्ति, कान्ति,
संदीपन = अच्छी प्रकार प्रज्वलित)
दुर्भाव = बुरे भाव
शत्रु-दल = दुश्मनों का समूह (काम क्रोध आदि)
तन्मय = एकाग्र
बृहद = बड़ा
इध्म = अग्नि संदीपन
शंसन = चाहा हुआ, निर्देशित,
यज्ञ-स्तंभ = केतु
आदित्य = सूर्य
आत्म-संपदा = आत्मा की धरोहर
सत्व-बल = सात्विक बल
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
मनुष्य महान है
जिसका सदा शक्ति इन्द्र सखा होता है वे इस संसार में बहुत चमकते हैं। जिसको कभी बुढ़ापा नहीं आ सकता, जिसकी शक्ति का कभी ह्रास नहीं हो सकता वह सदा- तरुण परमेश्वर जिनको अपना सख्य प्रदान करता है, वे महान यज्ञ करते हैं और महायज्ञ द्वारा इस संसार में बहुत देदीप्यमान होते हैं।वे ऐसा महान यज्ञ करते हैं जिसमें 'इध्म' अग्नि से दीपन बहुत भारी होता है, जिसमें 'शस्त' यानी स्तुति पाठ बहुत-बहुत होता है और जिस का 'स्वरु' यानी यज्ञ-स्तम्भ बहुत बड़ा होता है। बाहर के द्रव्यमय यज्ञ में तो बड़े से बड़ा 'इध्म' संसार भर की काष्ठ- समिधाओं को जलाने से हो सकता है, बड़े- से- बड़ा 'शस्त' चारों वेदों का बार बार पाठ करने से हो सकता है और बड़े से बड़ा 'स्वरु'एक बड़े वृक्ष से बनाया जा सकता है, परन्तु इन्द्र-सखा लोग ज्ञानमय यज्ञ करते हैं, उसका अग्निसंदीपन तो बहुत ही बड़ा होता है, क्योंकि वे 'आत्मा' को अपने-आप को 'इध्म' में बनाकर जला देते हैं,अपने को इतना संदीपित करते हैं कि सब संसार में चमक उठते हैं,अपनी आत्मग्नि से विश्वभर को प्रकाशित कर देते हैं। इनके इस अन्दर के यज्ञ में 'शस्त' भी बहुत अधिक होता है,क्योंकि ये भक्त लोग दिन रात में जो भी कुछ जिह्वा से बोलते हैं जो कुछ भी मानसिक वाणी से उच्चारण करते हैं वह सब भगवान का स्तुति पाठ ही तो होता है, वह सब इन्द्र का शंसन ही तो होता है ।इस तरह इनके यज्ञ में अखण्ड स्तुति पाठ चलता है, ऐसा भूरी शस्त होता है जो कभी समाप्त नहीं होता। इसी भांति इनके इस यज्ञ का 'स्वरु' भी बहुत ही बड़ा होता है क्योंकि यह उस 'आदित्य' को यूप बनाकर अपना अध्यात्म- यज्ञ करते हैं जिससे यह समस्त संसार रूपी पशु बंधा हुआ है। उनके इस यज्ञ का झंडा [केतु] वह देदीप्यमान सूर्य होता है जो कभी मैला नहीं हो सकता, कभी नीचा नहीं हो सकता। ओह ! इन्द्र का सखा हो जाने पर मनुष्य कितना महान हो जाता है कितना महान हो जाता है।
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