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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 45/ मन्त्र 6
उ॒त त्वं म॑घवञ्छृणु॒ यस्ते॒ वष्टि॑ व॒वक्षि॒ तत् । यद्वी॒ळया॑सि वी॒ळु तत् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । त्वम् । म॒घ॒ऽव॒न् । शृ॒णु॒ । यः । ते॒ । वष्टि॑ । व॒वक्षि॑ । तत् । यत् । वी॒ळया॑सि । वी॒ळु । तत् ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत त्वं मघवञ्छृणु यस्ते वष्टि ववक्षि तत् । यद्वीळयासि वीळु तत् ॥
स्वर रहित पद पाठउत । त्वम् । मघऽवन् । शृणु । यः । ते । वष्टि । ववक्षि । तत् । यत् । वीळयासि । वीळु । तत् ॥ ८.४५.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 45; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 43; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 43; मन्त्र » 1
Bhajan -
आज का वैदिक भजन 🙏 1179
ओ३म् उ॒त त्वं म॑घवञ्छृणु॒ यस्ते॒ वष्टि॑ व॒वक्षि॒ तत् ।
यद्वी॒ळया॑सि वी॒ळु तत् ॥
ऋग्वेद 8/45/6
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू सभी शुभ कामनाएँ
पूर्ण करता
याचना सुन ले प्रभु
हों दूर अन्धेरे
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू जिसे चाहे
उसे पूर्ण दृढ़ बना दे
फिर उसे लगते नहीं
जग के थपेड़े
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
कोई शक्ति शत्रु
हावी हो ना सके
लाख दु:ख सताए
तो भी हंस के झेले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
लोभ लालच भी
गिरा सकते नहीं
गर बना तू दृ़ढ़ मुझे
हे इन्द्र ! मेरे
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
तू अभेद्य अछेद्य
कर मुझे हे मघवन्!
मेरी जीत का भार
निज हाथों में ले ले
सबकी चारों ओर से
सुनता अकेले
प्रार्थना प्रार्थी की सुन
चरणों में ले ले
रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
रचना दिनाँक :--
राग :- रागेश्री
गायन समय दिन का अंतिम प्रहर सूर्यास्त, ताल दादरा ६ मात्रा
शीर्षक :- हे मघवन् ! ७५७ वां भजन
*तर्ज :- *
00154-754
दृढ़ = मजबूत, पक्का
अभेद्य = जो टूटा ना जा सके
अछेद्य = जिसे छेदा ना जा सके
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
हे मघवन् !
हे भगवान तू मुझे भी सुन, तनिक मेरी प्रार्थना को सुन! तू तो प्रार्थना हो को ऐसा सुनने वाला है कि तुझसे प्रार्थी जो कुछ चाहता है, जो कामना करता है, उसे तू वह प्राप्त करा देता है। मैं जानता हूं, अच्छी तरह से जानता हूं कि तू मनुष्य को सब- कुछ देता है, उसके सब शुभ कामनाओं को पूर्ण कर देता है। फिर भी तू मेरी प्रार्थना को क्यों नहीं सुनता, इसे क्यों नहीं पूरा करता? हे इन्द्र! तू मुझे दृढ़ कर दे, शक्ति युक्त कर दे, पूरा समर्थ बना दे।
ओह! तू तो जिसे दिल करना चाहता है और दृढ़ बना देता है, वह पूरी तरह दृढ़ हो जाता है, अडिग हो जाता है। फिर उसे संसार की कोई शक्ति दवा नहीं सकती। वह अछेध्य,अभेद्य वह जाता है। इस संसार के हजारों शत्रु उसे हरा नहीं सकते, लाखों दुख- कलेश उसे डरा नहीं सकते, असंख्य प्रलोभन उसे गिरा नहीं सकते, वह पूर्ण 'वीळू'(दृढ़) हो जाता है। हे इन्द्र तू मुझे भी ऐसा दृढ़ बना दे, तू मेरी इस प्रार्थना सुन, मेरी इस कामना को पूर्ण कर।
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा🌹 🙏